________________ व्यञ्जनान्ता: पुल्लिङ्गाः अदस: पदे सति दस्य मो भवति। उत्वं मात्॥३२६॥ अदसो मात्परो वर्णमात्रस्योत्वं भवति आन्तरतम्यात् / अमू / जसि एबहुत्वे त्वी // 327 // अदसो मात्परो बहुत्वे निष्पन्ने एदीर्भवति / अमी। अमुं / अमू। 'अमून् / ___ अदो मुश्च / / 328 // अदसो मुरादेशो भवति टावचनस्य च नादेशोऽस्त्रियाम् / अमुना। अमूभ्याम् / .. अदसश्च // 329 // अदसोऽग्वर्जितात्परो भिस् भिर् भवति / धुट्येत्वम् / अमीभिः / अमुष्मै / अमूभ्याम् / अमीभ्यः / अमुष्मात् / अमूभ्यां / अमीभ्य: / अमुष्य / अमुयोः / अमीषाम् / अमुष्मिन् / अमुयोः / अमीषु / / श्रेयन्स् शब्दस्य तु भेदः / श्रेयान् / श्रेयांसौ / श्रेयांस: / हे श्रेयन् / हे श्रेयांसौ। हे श्रेयांस: / श्रेयांसं / श्रेयांसौ। श्रेयस: / श्रेयसा। श्रेयोभ्यां / श्रेयोभिः / पुमन्स्शब्दस्य तु भेदः / पुमान् / पुमांसौ। पुमांस: / हे पुमन् / पुमांसं / पुमांसौ। . अदस् के 'म' से परे ‘वर्णमात्र द' के 'अ' सहित विभक्ति मात्र को उकार हो जाता है // 326 // और वह उकार आदेश क्रम से होता है; यथा-ह्रस्व स्वर को ह्रस्व 'उ' एवं दीर्घ स्वर को दीर्घ 'टोता है। यहाँ दीर्घ औ है। अत: दीर्घ ऊ होकर-अम+ऊ=अम बना। अद+जस है पवाक्त “अदस: पदे म:” सूत्र से 'द' को 'म' करके “ज: सर्व इ:" इस १५२वें सूत्र से जस् को 'इ' और संधि होकर 'अमे' बना / पुन: बहुवचन के 'ए' को 'ई' हो जाता है // 327 // अदस् के 'म्' से परे बहुवचन में बने हुए 'ए' को 'ई' होकर 'अमी' बना। अद+ अम् है। 'द' को 'म' एवं द के 'अ' सहित अम् के अ को 'उ' होकर 'अमुम्' बना / अद+ शस् है। पहले अदान् बना करके 'द' को 'म' और दीर्घ 'आ' को 'ऊ' करके 'अमून्' बना। अद+टा है। स्त्रीलिंग को छोड़कर अदस को 'अमु' एवं 'टा' को 'ना' आदेश हो जाता है // 328 // 'अत: 'अमुना' बना। अद+भ्याम् 'अकारो दीर्घ घोषवति' सूत्र से 'अदाभ्याम् करके द् को म् एवं 'आ' को ऊ करने से 'अमूभ्याम्' बना। अद+ मिस् है पूर्ववत् 'द्' को 'म्' करके आगे सूत्र लगा। ___ अक् वर्जित अदस् से परे 'भिस्' को 'भिर्' आदेश हो जाता है और धुट के आने पर 'एकार' भी हो जाता है // 329 // अत: 'अमेभिः' बन गया। पन:-एदबहत्वे त्वी' सत्र से बहवचन के 'ए' को 'ई' करके 'अमीभिः' बना / अद+ डे है पूर्ववत् द् को 'म' और 'अ' को 'उ' करके “स्मै सर्वनाम्न:” इस १५३वें सूत्र से 'डे' को ‘स्मै' करके 'नामि' से परे स् को ष् करने से 'अमुष्मै' बना। अद+ ङसि पूर्ववत् द् को म्, अ को 'उ' करके "ङसि स्मात्” इस १५४वें सूत्र से स्मात् करके स् को ष् हुआ और 'अमुष्मात्' बना। अद+ ओस् है द को 'म' करके 'ओसि च्' १४६वें सूत्र से अ को 'ए' एवं संधि करकें 'अमयो:' बना एवं 'उत्वं मात' से म के 'अ' को 'उ' करके 'अमयो:' बन गया। १.शसि सस्य च नः॥