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________________ 38 तेर काठीयानुं स्वरुप महाराजेश्वर ! पारकी चाकरीमें महादुख छै. जुओ-परवस रात दिवस रहिवं, खांड सके नहीं, पीइ सके नहीं, रात दिवस हराया ढोरनी परइं फरवू, वली खाता जक नहीं, पीता जक नहीं, घरनी स्त्री थकी संबंध नहीं. पुत्रनो मुख जोवो नहीं। यत: - ___ अतिदुःख सदाभिक्षं अतिदुख परसेवना / अतिदुखं पुत्रमुर्खाः अतिदुखं गृहे कुपत्नी // 1 // महाराजेश्वर ! ए चार दुख छई. ए मोटो दुख पारकी सेवा करवी ते. तिवारे मोहराजा बोल्या-भाई ! ए दुख तुम्हने किम लागुं ? तिवारे हाथ जोडी कहता हुआ, अग्यांनना त्रिण भाई जे महाराज! तुम्हारी आपी राजधानी करता हता सुखें घरना माणस साथै क्रीडा विनोद........ .. ........................ आराधवो दुर्लभ संयमें आवरण तुटें, कदाचिन् संयम आराध्यो तो वीर्य फोरववो महादुर्लभ छे. ए च्यार अंग पामीने ए प्राणी स्युं करइ ? जुओ सोलमा श्रीशांतिनाथ, ते पांचमा चक्रवर्ती मातानी कूखें आवी शांति प्रवर्तावी, ते प्रभू द्रव्यशांति भावशांति प्रवां जिम. इहां प्राणीइं एहनो चरित्र सांभलीने श्रीशांतिनाथप्रभुजीनुं ध्यान धरवौं // 13 // -इति तेर काठीयानो दृष्टांत संपूर्णम् // संवत् 1850 वर्षे शाके 1715 प्रवर्तमाने फाल्गुन सुदि 5 गुरौ श्रीपंडित पं. श्रीकुंबरविजयजी शिशु पं. कस्तुरविजय लिख्यतं / धनपुरीनगरे श्रोशांतिजिनप्रसाद / __ श्रीरस्तु / शुभं भूयात् / कल्याणमस्तु / शुभं श्रेयः // श्री (પ્રશિસ્ત પોથીમાં શુદ્ધાશુદ્ધ જેવી હોય છે. કેટલાક કારણસર (પ્રાય) તેવી આપવાની પ્રથા છે.) पूज्याचार्य युगदिवाकर धर्मसूरीश्वर शिष्य मुनिश्री यशोविजयेन संपादितं संशोधितं च / वि. सं. 2014 वर्षे //
SR No.004308
Book TitleNavgranthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages320
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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