________________ 13 उपाध्याययशोविजयविरचित आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियटिसु' इति नन्दीखत्रे [सू. 57] 'अनुपरावृत्तवन्त आसन्' जमालिवत् नन्दी 57 सू. टीका] ए वृत्तिना दृष्टान्तथी जमालिनइ चतुरंतसंसार पणि आवइ, ते मार्टि दृष्टान्त एकदेशमात्रइज कहवो // 39 // ___ जमाली णं भंते ! देवे तामओ देवलोगाओ आउक्खएणं....जाव कहिं उववजिहिंति ? गोयमा ! चत्तरि पंच तिरिक्ख जोणियवमणुस्स देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरिअहित्ता तो पच्छा सिज्झिहित्ति [श. 9, उ.३३] ___ए भगवती सूत्रई 4, बेइन्द्रियादिक 5, थावर इम 9, तिर्यच कहिई, तेहमांहि भमतां अनंतसंसार थाई, इम कोई कहई छई-ते जुट्ठो• जे माटिं समासमध्यस्थितः तिर्यग्योनिक शब्दनुं भिन्न विशेपण भिन्न विभक्त्यन्त चत्तारि पंच पद संभवइ नहीं. तथा एहवो कठिन अर्थ होइ, तो वृत्तिकार व्याख्यान किम न करइं // 40 // जमालिनइ भगवतीनइ जे अनंत संसार कहइ छइ, तेहनइ इम सूत्र जोइं जहेव मंखलिपुत्ते तहेव णेरइयवजं संसारं अणुपरिमट्टित्ता तओ पच्छा सिझिस्सइ [ ] // 41 // च्युत्वा ततः पञ्चकृत्वो, भ्रान्त्वा तिर्यग्नुनाकिषु / अवाप्तबोधिनिर्वाणं, जमालिः समवाप्स्यति // 1 // -हैमवीरचरित्रे [ ] इहां 5, वारइ (3) गतिं भमतां 15 भव स्पष्ट छई, इहां कोइक नर नार किं भवांतरि 5, वार तिर्यंचमांहि भमतां अनंत संसार थाइ छई, इम कहई छइं ते मिथ्या-खोटुं-कायस्थिति एकवार गणतां 'निगोष्वेवानन्तवारं भ्रान्त' इत्यादि वचनव्याघात थाई, भवस्थिति 5, वार कहतां तो 15, ज भव थाइ ते मार्टि हठ छांडी विचारवो // 42 // 'देव 'किब्बिसियाणं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चहत्ता कहिं गच्छन्ति ! कहिं उववग्जंति !' 'गोयमा ! जाव चत्तारि पंच नेरइय तिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरिमट्टित्ता तो पच्छा सिझंति बुझंति मुच्चंति जाव अंतं करंति / ' [श. 9. उ. 33] ए सूत्राहि यावच्छब्दइ कालनियम आवई इम जमालिसूत्रइ पणि 'यावत् तावत्' शब्धनइ अध्याहारिं अनंतकाल कहवो, इम कोइ कहइ छइ ते महा अभिनिवेशी जाणवो जे मार्टि इहां यावत् शब्दि देवलोकच्यवनादि पूर्वोक्त अर्थ ज परामर्शइ छइ, तथा __'भावमो णं सिद्धे अणंता णाणपज्जवा अणंता दंसणपज्जवा जाव अणंता अगुरुलहु य पज्जवा' [ ] इत्यादिक स्थानइ 'घोतक यावच्छन्द' पणि दीसइ छइ // 43 // 1. तत च्युत्वा पच्चकृत्यो, भ्रान्त्वा तर्यग्नरादिसु इति पाठान्तरम् / 2. किठिव इति पाठांतरम् / /