________________ 12 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् [श्रीऋषभदेव 9 // . . तेनैव वार्षिकतपःपारणाऽभूजिनेशितुः / __ पञ्च दिव्यानि चाऽभूवंस्तथा लोकोऽपि दत्तवान् // 179 // यत्राभूत्पारणा तत्र रत्नपीठं व्यधुर्जनाः। भुञ्जते पूजयित्वैतत् पदादिकरमण्डलम् // 180 // स्वामिनो बहलीदेशे गमने रजनीमुखे / ज्ञात्वाऽपि बाहुबलिनाऽचिन्ति कार्यों महान् महः // 181 // प्रातर्महद्धर्या वंदिष्येऽयोध्यायां भरतेशवत् / विजहाराऽन्यत्र देवो राजा बाढं शुशोच तत् // 182 // ततस्तक्षशिलापुर्या यत्राऽस्थाद् भगवान् सिते / एकादश्यांतु पूर्वाह्य केवलज्ञानमाप्तवान् // 183 // भरतस्याऽऽयुधगृहेऽप्युत्पन्नं दिव्यशक्तिकम् / चक्ररत्नं तदा मुक्त्वा कार्य पूर्व हि धार्मिकम् // 184 // मरुदेवीं सहादाय हस्तिस्कन्धाधिरोहिताम् / मातस्त्वत्तनयस्यद्धि दर्शये ह्यधुनाऽखिलाम् // 185 // प्रत्यासन्नेऽथ समवसरणे देवतागमम् / नेत्रप्रकाशात् पश्यन्ती शण्वती देशनागिरम् // 186 // मरुदेवी भगवती मोहहानि समीयुषी / अवाप्य केवलज्ञानं तदैव शिवमाप च // 187 // आये समवसरणे जातो गणभृताऽऽदिमः / नाम्ना ऋषभसेनस्तत् श्रुत्वा धर्मोपदेशनाम् // 188 // ब्राह्मी साध्वी बभूवाऽत्र भरतः श्रावकः पुनः / सुन्दरी श्राविकां दीक्षां जिघृक्षुश्चक्रिवारिता // 189 // मरीचिप्रमुखा अन्ये कुमाराः प्रावजस्तदा / तापसास्तेऽपि भगवच्चरणं शिश्रियुः समे // 190 // भगवन्तं नमस्कृत्य कृत्यविच्चक्रपूजनम् / पूर्जनेन समं चक्रे भूपालस्याऽध्वनाऽनुगः // 191 // भरतो भरतं जित्वाऽऽकारयत् खानुजानपि / __ लोभक्षोभं विमुच्याऽमी दीक्षां जगृहुराहतीम् / / 192 // बली बाहुबली राजाऽमानयनास्य शासनम् / ___ ग्, वाक्, बाहु,मुष्टि, दण्डैर्भरतो नाऽऽप तज्जयम् // 193 // चक्रं मुक्तं न तद् गोत्रे प्रभवेदिति तत्पदे / युद्धेऽजितेऽपि भरते स्नेहान्मुष्टिं मुमोच न // 194 //