________________ 222] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम [ श्रीनेमिनाथराज्ये न्यस्य सुमित्रं तं सुग्रीवो व्रतमग्रहीत् / भद्राङ्गजः स पद्माख्यो मानी देशान्तरं ययौ // 25 // अत्रान्तरे सुमित्रस्य स्वसा कलिङ्गगेहिनी / अनङ्गसिंहपुत्रेणाऽपहता कमलेन सा // 26 // ज्ञात्वा चित्रगतिः शौर्यात् कमलस्याऽच्छिनत् शिरः / अनङ्गसिंहो युयुधे तच्चित्रगतिना सह // 27 // समरारंभणेऽस्मार्षीत् अनङ्गोऽसिं सुरार्पितम् / तमागतं चापजहे चित्रो विद्यातमोबलात्' // 28 // अखण्डशीलामानीय स्वसारं प्रददौ सुहृत् / __सुमित्राय ततो दीक्षां सुमित्रः प्रतिपन्नवान् // 29 // पमस्तं राज्यवैरेण कायोत्सर्गे निजधिनवान् / सुमित्रो ब्रह्मलोकेऽगाद् दष्टः पद्मोऽहिनाऽपतत् // 30 // सप्तमी नरकक्ष्मां स प्राप पापातितापभाक् / चित्रः सुमित्रविरहे सिद्धायतनमागमत् // 31 // अनेकविद्याभृत्सङ्गेऽनङ्गेनाप्यागतं तदा / सहादाय रत्नवती सुरोऽप्यागात् सुमित्रभूः // 32 // हर्षाद् ववर्ष पुष्पाणि शीर्षे चित्रगतेरपि / स्वजातेस्तौ स्वजातेश्च पुण्यनैपुण्यजन्मनः // 33 // स्वपुत्र्या अनुरागेण ज्ञानिवाक्यं स्मरन् गृहे / गत्वा मन्त्रिप्रेषणेनाऽनङ्गः सम्बन्धमादधे // 34 // वृत्ते विवाहेऽथ तयोर्यात्रां नन्दीश्वरादिषु / कुर्वस्तया चित्रगतिः पवित्रां गतिमातनोत् // 35 // धनस्य बान्धवौ नाम्ना देवदत्तौ धनात् परौ / देवीभूय च्युतौ चित्रगतेबन्धू बभूवतुः // 36 // मनोगतिश्च चपलगतिर्नाम्नाऽनुजौ क्रमात् / ताभ्यां रत्नवतीयुक्तः सोऽर्हद्धर्ममपालयत् / 37 / पितुर्वैराग्यमुदीक्ष्य वैरं सामन्तपुत्रयोः। रत्नवत्याः सुतं राज्ये न्यधाच्चित्रः पुरन्दरम् // 38 // 1. विद्यावलेन अन्धकारं कृत्वा /