________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 137 विश्रवाः सूनवे लङ्कां ददाविन्द्रो जिताहवः / तदा वैश्रवणाय द्राक् कौशिकाङ्गभुवे ध्रुवम् // 56 / रत्नश्रवाः प्रीतिमत्यां तनयोऽभूत सुमालिनः / . पाताललङ्कावास्तव्यो यौवनं प्राप सोऽन्यदा // 57 // जगाम कुसुमोद्याने विद्यासाधनकर्मणे / तत्राऽगात् खगपुत्र्येकाऽपृच्छद् रत्नश्रवाश्च ताम् // 58 // काऽसि त्वं किमिह प्राप्ता साऽप्यूचेऽहं तु कैकसा / व्योमविन्दोः सुता लघ्वी कौशिका मे स्वसाग्रजा // 59 // विश्रवा यक्षपूर्नाथस्तेनोदूढास्ति कौशिका / पुत्रो वैश्रवणस्तस्या लंकेशस्त्विन्द्रसेवकः // 60 // रत्नश्रवाश्चोपयेमे तां तदोपस्थितां स्वयम् / तया स्वप्नान्तरैक्षिष्ट सिंहो गर्भ बभार सा // 61 // दृढाङ्गी निष्ठुरवचाः अनम्रा मुखरा मुखे / अभूद् गर्भप्रभावेण निर्भया कैकसा तदा // 62 // द्वादशाब्दसहस्रायुस्तया सूनुरजायत / उत्तानशयनाबालः सोऽन्यदोत्पादलीलया // 63 // आददे पाणिना हारं प्राग्दत्तं भीमरक्षसा / नवमाणिक्यसंयुक्तं व्यक्तं चिक्षेप तं गले // 64 // युग्मं कुलानि नवनागानां यस्य हारस्य रक्षणे / तस्योद्धरणतः कण्ठे नवास्यानि चकाशिरे // 65 / / रत्नश्रवास्ततो नामादधे दशाननोऽस्त्वयम् / ज्ञानिनोक्तं च सस्मार हारवोढाऽर्द्धचक्रभृत् // 66 // भानुस्वप्नाद् भानुकर्णः कुम्भकर्णोऽपराख्यया / . पुत्रं सूर्पणखां पुत्री पुनः प्रासूत कैकसा // 67 // कालान्तरे सैव चन्द्रस्वप्नसूचितमङ्गजम् / बिभीषणं च सुषुवे रेजे तद्वान्धवत्रयम् // 68 // दशाननोऽथ तारुण्ये धनदं यान्तमम्बरे / महद्धर्थाऽपश्यदेषोऽत्र कश्चेति पृष्टवान् प्रमूम् // 69 // . पुत्रो विश्रवसो मेऽयं कौशिकायाः स्वसुः पुनः / इन्द्राज्ञया पाति लङ्कां राक्षसद्वीपनायकः // 70 // ल. त्रि. 18