________________ चरितम् ] लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् [ 113 mwwwmM सुकेतुरपि तत्पापाद् भ्रान्त्वाऽनेकभवानिह / वैताढथे प्रतिविष्णुत्वं लेभे विजयभृत्पुरे // 5 // बलिर्नाम्ना दृढस्थाम्ना सर्वत्रोदितशासनः / श्यामपञ्चाशदब्दानां सहस्रास्तस्य जीवितम् // 6 // षट्त्रिंशद्धनुरुत्तुङ्गो दक्षिणार्द्ध सभारतम् / अनारतं शिष्टलोकं निःशोकं कृतवान् नयात् / 7! समयेऽत्रैव सद्ग्रामे भरतार्द्ध च दक्षिणे / चक्रावर्ते पुरे राजाऽजायत श्रीमहाशिराः // 8 // पत्नीद्वयमभूदस्य वैजयन्ती पुरस्सरा / लक्ष्मीवती परा रूपादन्योन्यमुपमां गते // 9 // सहस्रारदिवश्च्युत्वा जीवः सुदर्शनस्य सः / वैजयन्त्या गर्भभुवं शिश्रियेऽन्वयिनां श्रिये // 10 // समयेऽसूत सानन्दं चतुःस्वप्नावलोकनात् / एकोनत्रिंशद्धन्वोच्चमानन्दाऽभिधया बलम् // 11 // . . प्रियमित्रस्य यः प्राणी तुर्यकल्पात् परिच्युतः / लक्ष्मीवत्याः कुक्षिरत्नं हरिः समुदपद्यत // 12 // स्वप्नसप्तकदृष्टयैव दिष्टयादिष्टा नृपेण सा। विष्णुस्तव सुतो भावी तुष्टेति सुषुवेऽङ्गजम् // 13 // पित्राऽधत्ताऽस्य पुरुषपुण्डरीक इति स्फुटा / .: आख्या व्याख्यानतः शौर्यमनाहार्य विवृण्वता // 14 // तौ मिथः प्रणयस्थानं सत्रा जगृहतुः कलाम् / नीलपीताम्बरौ तालविशालगरुलध्वजौ / 15 / राजेन्द्रपुरभूनाथः पुण्डरीकाय पुत्रिकाम् / पद्मावतीं ददौ प्रीत्योपेन्द्रसेनो महीपतिः / 16 / संजहे प्रतिविष्णुस्तां जानकीमिव रावणः / रणे रणे तन्निमित्ते सैन्ययुद्धमुपास्थित // 17 // चक्रेणातिरुषा स्वस्य मुक्तेन प्रतिविष्णुना / उरस्ताडनतो विष्णुर्मुमूर्छाऽतुच्छविक्रमः // 18 // अलुनात् तच्छिरस्तेन जज्ञे जयजयारवः / उद्दधे मगधासन्नां ततः कोटिशिलां बलात् / / 19 // . पश्चषष्टिसहस्राणि वर्षाणामस्य जीवितम् / / तदा पूर्यभुवं षष्टी नरकाणां स चाश्रयत् // 20 // ल. त्रि. 15