________________ 80 ] महोपाध्यायश्रीमन्मेघविजयविरचितम् [श्रीशांतिनाथक्षमापालः प्रजापालस्तत्राऽऽसीत् त्रासिताऽहितः / हितः पितेव सर्वासां प्रकृतीनां शुभाकृतिः // 4 // श्रीषेणनामा तस्य द्वे भार्ये धार्ये हृदम्बुजे / एकाऽभिनन्दिता राज्ञी तत्परा सिंहनन्दिता // 5 // दृष्टौ प्रथमया स्वप्नेऽन्यदाऽतिसुप्तया निशि / सूर्याचन्द्रमसौ ध्वस्तसमस्तश्यामतामसौ // 6 // प्रातस्तत्कथने भर्तुः पुरस्तादूचिवान नृपः / विचार्य सुचिरं देवि ! तनयौ सनयौ तव // 7 // भविष्यतो भुवि ख्यातौ ततः प्रमुदिता प्रिया / इन्दुषेणविन्दुषेणौ साऽसूत तनुजौ क्रमात् // 8 // युग्मं // प्रवर्द्धमानौ सोत्साहमाश्चर्यैश्वर्यचर्यया / आचार्याध्यापितौ प्राज्ञौ तौ यौवनमुपेयतुः // 9 // इतोऽचलपुरे विप्रो नाम्नाऽभूद् धरणीजटः / यशोभद्राङ्गजो नन्दिभूतिः श्रीभूतिरित्यपि // 10 // पुत्राध्यायेऽस्य दासेरोऽप्यपाठीव कपिलः श्रुतिम् / अन्यदा जीविका कर्तुं ययौ रत्नपुरे क्रमात् // 11 // . तत्र सात्यकिनारक्षि दक्षत्वेनाऽधिकारिणा / उपाध्यायेन तनया सत्यभामा विवाहिता // 12 // अन्येयुः काऽपि पर्वादौ कपिलो नृत्यवीक्षणे / गतः प्रत्यागच्छतोऽस्याऽजनिष्ट वृष्टिरम्बुदात् // 13 // क्लिन्ने मे वसनेऽभूतामेति कक्षाहिताम्बरः / नग्नीभूयाऽऽगतो गेहे पृष्टः स्वप्रियया तया // 14 // आर्द्रवासःप्रहाणेनाऽन्ये वस्त्रे संगृहाण च / तेनोक्तं विद्यया क्लिनं न वासो मे मनागपि // 15 // विद्युत्कान्त्या नग्नभावं वीक्ष्य क्षुब्धा वधूरितः / न कुलीनोऽनया बुद्धथा मन्दप्रीतिः प्रियाऽभवत् // 16 // इतो दरिद्रवान् वप्ता तत्राऽगाद्धरणीजटः / पृथग्भोजनपात्राद्यैस्तत् पृष्टः स्पष्टमुज्जगौ // 17 //