________________ समर्पण विलोडियं आगम दुद्ध मेव, लद्धं सुलद्धं णवणीय मच्छं / सज्झाय सज्झाण रयस्स निच्चं. जयस्स स्स प्पणिहाण पुव्वं // जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत / श्रुत्-सध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से // विनयावनतः आचार्य तुलसी