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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 2 २-श्रमण-परम्परा को एकसूत्रता और उसके हेतु 36 भगवान् पार्श्व के समय श्रमण-संघ बहुत सुसंगठित था। उपनिषद् का रचना-काल उनसे पहले नहीं जाता। भगवान पार्श्व का अस्तित्व-काल ई० पू० दसवीं शताब्दी है। और उपनिषदों का रचना-काल प्रायः ई० पूर्व 800 से 300 के बीच का है / १-भगवान् महावीर का निर्वाण-काल ई० पू० 528 में हुआ था। भगवान् महावीर का जीवन-काल 72 वर्ष का था। (देखिए-जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पृ० 26) : भगवान् पार्श्व भगवान् महावीर से 250 वर्ष पहले हुए थे। पास जिणाओ य होइ वीरजिणो। अट्ठाइज्जसएहिं गएहिं चरिमो समुप्पन्नो॥ उनका 100 वर्ष का जीवन-काल था। इस प्रकार भगवान् पार्श्व का अस्तित्वकाल ई० पू० दसवीं शताब्दी होता है। आचार्य गुणभद्र के अनुसार भगवान् पार्श्व के निर्वाण के 250 वर्ष बाद भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था पार्वेशतीर्थे सन्ताने, पंचाशद्विशताब्दके। तदभ्यन्तरवायु, महावीरोऽत्र जातवान् // -महापुराण (उत्तरपुराण), पर्व 74, पृ० 462 / अर्थात् श्री पार्श्वनाथ तीर्थङ्कर के बाद दो सौ पचास वर्ष बीत जाने पर श्री महावीर स्वामी उत्पन्न हुए थे, उनकी आयु (72 वर्ष) भी इसी में शामिल है : आचार्य गुणभद्र के उक्त अभिमत से भगवान् पाव का अस्तित्व-काल ई० पू० नौवीं शताब्दी होता है। Co. (7) History of the Sanskrit Literature, p. 226. आर्थर ए. मैकडॉनल के अभिमत में प्राचीनतम वर्ग बृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय और कौशीतकी उपनिषद् का रचना-काल ईसा पूर्व (ख) A. B. Kieth : the Religion and Philosophy of the Veda and Upanisads, P. 20. इसके अनुसार वैदिक-साहित्य का काल-मान इस प्रकार है १-उपनिषद् - ई० पू० ५वीं शताब्दी। २-ब्राह्मण - ई० पू० ६वीं शताब्दी। ३-बाद की संहिताएँ - ई० पू० ८-७वीं शताब्दी / इन्होंने जैन तीर्थङ्कर पार्श्व का काल ईसा पूर्व 740 निर्धारित किया है और प्राचीनतम उपनिषदों का काल पार्श्व के बाद माना है।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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