SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 511
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 482 उत्तराध्ययन एक : समीक्षात्मक-अध्ययन 30 / 27 ठाणा वीरासणाईया यहाँ नपुंसकलिंग के स्थान पर स्त्रीलिंग है। (607) 3036 छट्ठो सो परिकित्तिओ। टीकाकार ने इन तीनों शब्दों को नपुंसकलिंग मान कर व्याख्या की है और इनको 'तप' का विशेषण माना है / (610) हमने इनको मूल रूप में पुल्लिंग मानकर 'व्युत्सर्ग' के विशेषण माने हैं। 32 / 20 यहाँ नपुंसक के स्थान पर सर्वत्र पुल्लिंग का प्रयोग है / (628) 35 // 12 यहाँ नपुंसक के स्थान पर सर्वत्र पुल्लिंग का प्रयोग है / (666) 36 / 8 यहाँ नपुंसक के स्थान पर सर्वत्र पुल्लिंग का प्रयोग है / (673) ७-क्रिया और अर्द्धक्रिया 226,22 विहन्नई यहाँ कर्मवाच्य के स्थान पर कर्तृवाच्य का प्रयोग हुआ है / (88,110) 2 // 31 लब्भामि यहाँ द्वित्व अलाक्षणिक है। 2 // 33 संचिक्ख यह 'स्था' धातु के 'स्यादि' के प्रथमपुरुष का एकवचन है-संतिष्ठेत् / परन्तु 'अचां सन्धिलोपो बहुलम्' सूत्र से 'एकार' का लोप करने पर ___ 'संचिक्ख' रूप बना है। (120) 2041 उइज्जन्ति यहाँ भविष्यत्काल का व्यत्यय हुआ है। इसका रूप होगा 'उदेष्यन्ति' / (127) 2 / 45 अस्थि यह विभक्ति-प्रतिरूपक निपात है। इसका बहुवचनपरक अर्थ है-'हैं। (132) 2145 अभू-भविस्सई यहाँ बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग हुआ है / (132) 33 गच्छई शान्त्याचार्य (182) ने इसे एकवचन और नेमिचन्द्र' ने बहुवचन माना है। 3 / 6 परिभस्सई यहाँ बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग है। १-सुखबोषा, पत्र 67 //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy