________________ खण्ड 2, प्रकरण : 6 तुलनात्मक अध्ययन 453-- 453 - त्रयी धर्ममधर्मार्थ किंपाकफलसंनिभम् / नास्ति तात ! सुखं किञ्चिदत्र दुःखशताकुले // (शांकरभाष्य, श्वेता० उप०, पृ०२३) रागद्वेषवियुक्तस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् / आत्मवश्यविधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति // (गीता 2 / 64) ब्राह्मण जयघोष और विजयघोष नाम के दो भाई थे। जयघोष मुनि बन गए / विजयघोष ने यज्ञ का आयोजन किया। मुनि जयघोष यज्ञवाट में भिक्षा लेने गए। यज्ञ-स्वामी ने भिक्षा देने से इन्कार कर दिया और कहा कि यह भोजन केवल बाह्मणों को ही दिया जायगा। तब मुनि जयघोष ने समभाव रखते हुए उसे ब्राह्मण के लक्षण बताए / उत्तराध्ययन के पच्चीसवें अध्ययन में १९वें श्लोक से ३२वें श्लोक तक ब्राह्मणों के लक्षणों का निरूपण है और (28,26,30,31) के अतिरिक्त प्रत्येक श्लोक के अंत में 'तं वयं वम माहणं' ऐसा पद है। इसकी तुलना धम्मपद के ब्राह्मणवर्ग (३६वाँ), सुत्तनिपात के वासेटुसुत्त (35) के २४५वे अध्याय से होती है। धम्मपद के ब्राह्मणवर्ग में 42 श्लोक हैं और उनमें नौ श्लोकों के अतिरिक्त (1,2, 5,6,7,8,10,11,12) सभी श्लोकों का अन्तिम पद 'तमहं ब्रू मि ब्राह्मणं' है। . सुत्तनिपात का 'वासेट्ठ सुत्त' गद्य-पद्यात्मक है। उसमें 63 श्लोक हैं। उनमें 26 श्लोकों (27-45) का अन्तिम चरण 'तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं' है। इसमें कौन ब्राह्मण होता है और कौन नहीं, इन दोनों प्रश्नों का सुन्दर विवेचन है। अन्तिम निष्कर्ष यही है कि ब्राह्मण जन्मना नहीं होता, कर्मणा होता है। महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 245 में 36 श्लोक हैं। उनमें सात श्लोकों (11, 12,13,14,22,23,24) के अन्तिम चरण में 'तं देवा ब्राह्मणं विदुः' ऐसा पद है। तीनों में ब्राह्मण के स्वरूप की मीमांसा है। उत्तराध्ययन के अनुसार ब्राह्मण (1) जो संयोग में प्रसन्न नहीं होता, वियोग में खिन्न नहीं होता, (2) जो आर्य-वचन में रमण करता है, जो पवित्र है, जो अभय है, (3) जो अहिंसक है, (4) जो सत्यनिष्ठ है, (5) जो अचौर्यव्रती है, (6) जो ब्रह्मचारी है,