________________ (4 // 3).. उत्तराध्ययन एक : समीक्षात्मक-अध्ययन तेणे जहा सन्धिमुहे गहीए, सकम्मुणा किच्चइ पावकारी। एवं पया पेच्च इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्ख अतिय // चीराजिणं नगिणिणं, जडीसंघाडिमुण्डिणं / एयाणि वि न तायन्ति, दुस्सीलं परियागयं // जे लक्खण च सुविण च, अंगविजं च जे पउंजन्ति / न हुते समणा वुच्चन्ति, एवं आयरिएहिं अक्खायं // सुहं वसामो जीवामो, जेसि मो नत्थि किंचण। मिहिलाए उज्झमाणीए, न मे डज्झइ किंचण // (5 / 21) (8 / 13) (14) (6 / 34) : जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे / एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ // जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। तस्सावि संजमो सेओ, अदिन्तस्स वि किंचण // (40) मासे मासे तु जो बालो, कुसग्गेण तु भुंजए / न सो सुयक्खायधम्मस्स, कलं अग्घइ सोलसिं // (6 / 44) (48) सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया। नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा उ आगाससमा अणन्तिया // पुढवी साली जवा चेव, हिरणं पसुभिस्सह / पडिपुण्णं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे॥ (49)