SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 438 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययने ___एक बार कोडिन्न, दिन्न और सेवाली–तीनों तापस अपने-अपने पाँच-पाँच सौ शिष्यों के साथ अष्टापद पर्वत पर चढ़ने के लिए आए / कोडिन्न एकान्तर तप करता और कन्द-मूल खाता था। दिन्न बेले-बेले की तपस्या करता और भूमि पर गिरे हुए जीर्ण पत्ते खाकर निर्वाह करता था। सेवाली तेले-तेले की तपस्या करता और शैवाल खाकर निर्वाह करता था।' स्थान-स्थान पर शिव, इन्द्र, स्कन्द और विष्णु के मन्दिर होते थे और उनकी पूजा की जाती थी। विकीर्ण पुत्र-प्राप्ति के लिए मंत्र और औषधियों से संस्कृत जल से स्त्री को स्नान कराया जाता था। अमात्य आदि विशेष पद पर रहने वाले व्यक्तियों की वेश-भूषा भिन्न प्रकार की होती थी। उत्सवों के अवसर पर घरों पर ध्वजाएँ फहराई जाती थीं।" सूक्ष्म वस्त्र तथा कम्बल यंत्र से बनाए जाते थे। नदी के किनारे प्रपा बनाने का रिवाज था। ऐसी प्रपाओं में पथिकों तथा परिव्राजकों को अन्न-पानी का दान किया जाता था / " किसी के मरने पर अनेक लौकिक कृत्य किए जाते थे। मृतक के पीछे रोने की. रिवाज थी। शबर जाति के लोग तमाल के पत्ते पहनते थे। - इस प्रकरण के अन्तर्गत सभ्यता और संस्कृति का कुछ लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। ये तथ्य केवल संकेत मात्र हैं। उत्तराध्ययन की टीका सुखबोधा में संग्रहीत प्राकृत कथाओं के आधार पर और भी अनेक तथ्यों पर प्रकाश डाला जा सकता है। १-सुखबोधा, पा 155 // २-उत्तराध्ययन नियुक्ति, 315 / ३-सुखबोधा, पत्र 217 / ४-वही, पत्र 217 / ५-बृहद्वृत्ति, पत्र 147 / ६-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ०९; बृहद्वृत्ति, पत्र 122 / ७-सुखबोधा, पत्र 188 / -वही, पत्र 202 / . ९-बृहद्वृत्ति, पत्र 142H शबरनिवसनं तमालपत्रम् /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy