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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन उसी गाँव में श्रीगुप्त आचार्य भी अनेक विद्याओं में पारंगत थे। वे इनकी प्रतिपक्षी विद्याओं के ज्ञाता थे। वे विद्याएँ ये हैं(१) मयूरी (5) सिंही (2) नकुली (6) उलूकी (3) विडाली (7) ओलावी-बाज / (4) व्याघ्री एक बार परिव्राजक और आचार्य श्रीगुप्त के शिष्य रोहगुप्त में परस्पर इन विद्याओं का प्रयोग हुआ और अन्त में रोहगुप्त की विजय हुई। भूतवादी लोग भी यत्र-तत्र घूमते थे। वे अपने वश में किए हुए भूतों से मनोवाञ्छित कार्य करा सकते थे। एक बार एक नगर में उपद्रव हुआ / तीन भूतवादी राजा के पास आए और बोले"हम आपके नगर का उपद्रव मिटा देंगे।" राजा ने पूछा- "कसे ?" एक भूतवादी ने कहा-"मेरे पास एक मंत्रसिद्ध भूत है। वह सुन्दर रूप बनाकर नगर में घूमेगा। जो उसको एकटक देखेगा, वह मर जाएगा और जो नीचा मुँह कर निकल जाएगा, वह सभी रोगों से मुक्त हो जाएगा।" राजा ने कहा- "मेरे ऐसा भूत नहीं चाहिए।" दूसरे भूतवादी ने कहा- "मेरा भूत विकराल रूप बनाकर अट्टहास करता हुआ, नाचता-गाता हुआ नगर में घूमेगा। उसको देखकर जो उसका उपहास करेगा, उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे और जो उसकी पूजा करेगा, वह रोग-मुक्त हो जाएगा।" राजा ने कहा- "मेरे ऐसा भूत नहीं चाहिए।" ____तीसरे भूतवादी ने कहा- "मेरा भूत समदृष्टि है। कोई उसका प्रिय करे या अप्रिय, वह किसी पर प्रसन्न या नाराज नहीं होता। लोग उसे देखते ही रोग-मुक्त हो जाएंगे।" राजा ने कहा- “यह भूत अच्छा है।" भूतवादी ने उस भूत की सहायता से नगर का सारा उपद्रव मिटा दिया। __ कई व्यक्ति 'संकरी विद्या' में प्रवीण होते थे। इसके स्मरण-मात्र से दास-दासी वर्ग उपस्थित हो जाता था। इनके अतिरिक्त निम्न विद्याएँ प्रचलित थी १--उत्तराध्ययन नियुक्त, 174 / २-देशीनाममाला, 11160 : सेणे ओलयओलावया य.....। ३-बृहद्वृत्ति, पत्र 169 / ४-सुखबोधा, पत्र 5,6 / ५-वही, पत्र 190 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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