SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति 415 राजा के पुत्र-जन्म और राज्याभिषेक के अवसर पर जनता को कर-मुक्त किया जाता था। अपराध और दण्ड ___ अपराधों में चौर्य-कर्म प्रमुख था। चोरों के अनेक वर्ग यत्र-तत्र कार्यरत रहते थे। लोगों को चोरों का आतंक सदा बना रहता था। राजा चोरों के दमन के लिए सदा प्रयत्नशील रहते थे। चोरों के प्रकार उत्तराध्ययन में पाँच प्रकार के चोरों का उल्लेख है (1) आमोष- धन-माल को लूटने वाले / (2) लोमहार- धन के साथ-साथ प्राणों को लूटने वाले / (3) ग्रन्थेि-भेदक- ग्रन्थि-भेद करने वाले। (4) तस्करः- - प्रतिदिन चोरी करने वाले / ' (5) कण्णुहर- कन्याओं का अपहरण करने वाले / 2 लोमहार बहुत क्रूर होते थे। वे अपने आपको बचाने के लिए लोगों की नृशंस हत्या कर देते थे। गृन्थि-भेदक 'घुर्घरक' (?) तथा विशेष कैंचियों से गाँठों को काटकर धन चुराते थे। - कई चोर धन की तरह स्त्री-पुरुषों को चुरा ले जाते थे। एक बार उज्जनी के सागर सेठ के पुत्र को किसी चोर ने चुराकर मालव के एक रसोइए के हाथ बेच दिया / 4 - चोर इतने निष्ठुर होते थे कि वे चुराया हुआ अपना माल छिपाने के लिए अपने कुटुम्बी जनों को भी मार देते थे। एक चोर अपना सारा धन अपने घर के एक कुएं में रखता था। एक दिन उसकी पत्नी ने देख लिया, तो उसने सोचा, कहीं भेद न खल जाए इसलिए उसने अपनी पत्नी को मार कर कुएं में डाल दिया। उसका पुत्र चिल्लाया। लोगों ने उसे पकड़ लिया। १-उत्तराध्ययन, 9 / 28 ; सुखबोधा, पत्र 149 / २-उत्तराध्ययन, 7.5 / ३-सुखबोधा, पत्र 149 / ४-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 174 : ___ उज्जेणीए सागरस्स सुतो चोरेहिं हरिउं मालवके सूयगारस्स हत्थे विक्कीतो। ५-सुखबोधा, पत्र 81 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy