________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 निक्षेप-पद्धति 403 भाव-अंग के दो प्रकार हैं-१-श्रुत-अंग और २-नोश्रुत-अंग। . . . . .. १-श्रुत अंग के बारह प्रकार हैं-(१) आचारांग, (2) सूत्रकृतांग, (3) स्थानांग, (4) समवायांग, (5) भगवती, (6) ज्ञाताधर्मकथा, (7) उपासकदशा, (8) अन्तकृद्दशा, (9) अनुत्तरोपपातिकदशा, (10) प्रश्नव्याकरण, (11) विपाक और (12) दृष्टिवाद / (2) नोश्रुत-अंग के चार प्रकार हैं (1) मानुष्य- मनुष्यता। ( 2 ) धर्मश्रुति- धर्म का श्रवण ( 3 ) श्रद्धा- धर्म करने की अभिलाषा। ( 4 ) वीर्य- तप और संयम में शक्ति / ' इसके छः प्रकार हैं(क) नामकरण (घ) क्षेत्रकरण. (ख) स्थापनाकरण (ङ) कालकरण और (ग) द्रव्यकरण (च) भावकरण द्रव्यकरण इसके दो प्रकार हैं: (1) संज्ञाकरण-जिसकी क्रिया के अनुगत संज्ञा हो, जैसे- 'कटकरण' अर्थात् कट निष्पादक उपकरण, 'अर्थकरण' अर्थात् सिक्का ढालने का ठप्पा। (2) नो-संज्ञाकरण-जिसकी संज्ञा क्रिया के अनुरूप रूढ़ न हो। * क्षेत्रकरण क्षेत्र-आकाश के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता, इसलिए द्रव्यकरण को भी अवकाश को प्रधानता के कारण 'क्षेत्रकरण' कहा जाता है, जैसे-इक्षुक्षेत्रकरण, शालिक्षेत्रकरण, तिलक्षेत्रकरण / १-(क) उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा 144-156 / (ख) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 92,93 / (ग) बृहद्वृत्ति, पत्र 141-144 /