SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 362 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . __बछड़ा सुखपूर्वक बढ़ने लगा। वह युवा हुआ। उसमें अपार शक्ति थी। राजा ने देखा / वह बहुत प्रसन्न हुआ। ..... कुछ समय बीता। एक दिन राजा पुन: वहाँ आया। उसने देखा कि वही बछड़ा आज बूढा हो गया है, आँखें गड़ी जा रही हैं, पैर लड़खड़ा रहे हैं और दूसरे छोटे-बड़े बैलों का संघट्टन सह रहा है। राजा का मन वैराग्य से भर गया। संसार की परिवर्तनशीलता का भान हुआ / वह प्रत्येक-बुद्ध हो गया।' बौद्ध-ग्रन्थ के अनुसार __उस समय कलिंग राष्ट्र में दन्तपुर नाम का नगर था / वहाँ करकण्ड नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन वह उद्यान में गया। वहाँ उसने एक आम्र-वृक्ष देखा। वह फलों से लदा हुआ था। राजा ने एक आम तोड़ा और वहीं मंगल-शिला पर बैठ उसे खाया। राजा के साथ वाले सभी मनुष्यों ने एक-एक आम तोड़ा। कच्चे आम भी तोड़ लिए गए। वृक्ष फल-विहीन हो गया। __ घूम-फिर कर राजा पुन: उसी वृक्ष के नीचे आ ठहरा / उसने अर देखा। वृक्ष की शोभा नष्ट हो चुकी थी। वह वृक्ष अत्यन्त असुन्दर प्रतीत होने लगा। राजा ने पास में खड़े दूसरे आम्र-वृक्ष की ओर देखा। वह भी फल-हीन था, पर इतना असुन्दर नहीं दीख रहा था / राजा ने सोचा-"यह वृक्ष फल-रहित होने पर भी मुण्ड-मणि पर्वत की तरह सुन्दर लगता है लेकिन यह फल-युक्त होने से ही इस दशा को प्राप्त हुआ है। गृहस्थी भी फल वाले वृक्ष की तरह है / प्रव्रज्या फल-रहित वृक्ष के समान है / धन वाले को सर्वत्र भय है, अकिञ्चन को भय नहीं। मुझे भी फल-रहित वृक्ष की तरह होना चाहिए। विचारों की तीव्रता बढ़ी। फलित-वृक्ष का ध्यान कर वृक्ष के नीचे खड़े ही खड़े वह प्रत्येक-बुद्ध हो गया / "2 २-द्विमुख जैन-ग्रन्थ के अनुसार पाञ्चाल देश में काम्पिल्य नाम का नगर था। वहाँ जय नाम का राजा राज्य करता था। वह हरिकुलवंश में उत्पन्न हुआ था। उसकी रानी का नाम गणमाला था। ___ एक दिन राजा आस्थान मण्डप में बैठा था। उसने दूत से पूछा- "संसार में ऐसी कौन-सी वस्तु है जो मेरे पास नहीं है और दूसरे राजाओं के पास है ?" दूत ने कहा"राजन् ! तुम्हारे यहाँ चित्र-सभा नहीं है / " राजा ने तत्काल चित्रकारों को बुलाया और चित्र-सभा का निर्माण करने की आज्ञा दी। चित्रकारों ने कार्य प्रारम्भ किया। पृथ्वी १-सम्पूर्ण कथानक के लिए देखिये-सुखबोधा, पत्र 133 / २-कुम्भकार जातक (संख्या 408), जातक, चतुर्थ खण्ड, पृ० 37 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy