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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (4) जैन-कथावस्तु के अनुसार इन्द्र परीक्षा करने आता है और जातक में देवी सीवली परीक्षा करने आती है। (5) जन-कथावस्तु के अनुसार मिथिला नरेश नमि कंकण के शब्दों को सुन प्रतिबुद्ध हुए और बौद्ध-कथावस्तु के अनुसार मिथिला नरेश आम्र-वृक्ष को देख प्रतिबुद्ध हुए। (6) अकेले में सुख है-दोनों का सोचना / सोनक जातक (सं० 526) - इस जातक में भी कुछ ऐसा ही प्रसंग आया है। पुरोहित का पुत्र सोनक मगध नरेश के पुत्र अरिन्दम कुमार का मित्र था। वे राजगृह में रहते थे। उस समय वहाँ मगध का साम्राज्य था। सोनक का मन संन्यास की ओर झुका। वह वहाँ से चल पड़ा। दोनों मित्र अलग-अलग हो गए। चालीस वर्ष बीते / कुमार अरिन्दम वाराणसी का राजा बन गया था। उसे अपने मित्र सोनक की स्मृति हो आई। उसने एक गाथा कही कस्स सुत्वा सतं दम्मि सहस्सं दठु सोनकं / को मे सोनकं अक्खाति सहायं पंसुकीलितं // ___ "किसी को सुन कर कहने वाले को सौ दूंगा, स्वयं देख कर कहने वाले को हजार दूंगा। कौन है जो मुझे मेरे बचपन के मित्र सोनक का समाचार देगा ?" ___ लोगों के मुंह-मुंह पर यह गीत नाचने लगा। एक दिन एक कुमार राजा के पास आया और बोला महं सुत्वा सतं देहि, सहस्सं दट्ट सोनकं / अहं सोनकं आक्खिस्सं, सहायं पंसुकीलितं // "मुझे सुनाने वाले को आप सौ दें, मुझे देखने वाले को हजार दें, मैं तुम्हारे बचपन के मित्र सोनक को बता दूंगा।" बालक ने कहा- "सोनक उद्यान में है।" राजा वहाँ गया। प्रत्येक-बुद्ध सोनक ने आठ श्रमण-भद्र गाथाएँ कहीं। उनमें पाँचवीं गाथा थी पंचम भद्रं अधनस्स अनागारस्स भिक्खुनो। नगरम्हि डरहमानाम्हि नास्स किंचि अडयहथ // "अकिंचन अनागारिक भिक्षु के लिए पाँचवीं आनन्द की बात वह है कि यदि नगर में आग भी लग जाए तो उसका कुछ नहीं जलता।"
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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