________________ संण्ड 2, प्रकरणे : 1 कथानक संक्रमण 333 अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम् / 'पितुः पुत्रेण संवादं तं निबोध युधिष्ठिर ! // 2 // भीष्मजी ने कहा-'युधिष्ठिर ! इस विषय में ज्ञानी पुरुष पिता और पुत्र के संवाद रूप इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं। तुम उस संवाद को ध्यान देकर सुनो।' द्विजातेः कस्यचित् पार्थ !, स्वाध्यायनिरतस्य वै। बभूव पुत्रो मेघावी, मेधावी नाम नामतः // 3 // कुन्तीकुमार ! प्राचीन काल में एक ब्राह्मण थे, जो सदा वेदशास्त्रों के स्वाध्याय में तत्पर रहते थे। उनके एक पुत्र हुआ, जो गुण से तो मेधावी था ही नाम से भी मेधावी था। सोऽब्रवीत् पितरं पुत्रः, स्वाध्यायकरणे रतम् / मोक्षधर्मार्थकुशलो, लोकतत्त्वविचक्षणः // 4 // __ वह मोक्ष, धर्म और अर्थ में कुशल तथा लोकतत्त्व का अच्छा ज्ञाता था। एक दिन उस पुत्र ने अपने स्वाध्याय -परायण पिता से कहा--- धीरः किंस्वित् तात कुर्यात् प्रजानां, क्षिप्रं ह्यायुधं श्यते मानवानाम् / पितस्तदाचक्ष्व यथार्थयोगं, ममानुपूळ येन धर्म चरेयम् // 5 // पुत्र बोला--'पिताजी ! मनुष्यों की आयु तीव्र गति से बीती जा रही है। यह जानते हुए धीर पुरुष को क्या करना चाहिए ? तात ! आप मूझे यथार्थ उपाय का उपदेश कीजिए, जिसके अनुसार मैं धर्म का आचरण कर सकूँ।' . - वेदानधीत्य ब्रह्मचर्येण पुत्र, पुत्रानिच्छेत् पावनार्थ पितृणाम् / अग्नीनाधाय विधिवच्चेष्टयज्ञो, वनं प्रविश्याथ मुनिबुभूषेत् // 6 // पिता ने कहा- 'बेटा ! द्विज को चाहिए कि वह पहले ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करते हुए सम्पूर्ण वेदों का अध्ययन करे, फिर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करके पितरों की सद्गति के लिए पुत्र पैदा करने की इच्छा करे। विधिपूर्वक विविध अग्नियों की स्थापना करके यज्ञों का अनुष्ठान करे। तत्पश्चात् वानप्रस्थ-आश्रम में प्रवेश करे। उसके बाद मौनभाव से रहते हुए संन्यासी होने की इच्छा करे / ' एवमभ्याहते लोके समन्तात् परिवारिते। अमोघासु पतन्तीषु किं धीर इव भाषसे // 7 // पुत्र ने कहा-'पिताजी! यह लोक जब इस प्रकार से मृत्यु द्वारा मारा जा रहा है, जरा अवस्था द्वारा चारों ओर से घेर लिया गया है, दिन और रात सफलतापूर्वक