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________________ 274 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन इस प्रकार बोधिसत्व के बार-बार बोलने से उसे क्रोध आ गया। 'यह बहुत बकवास करता है, ये द्वारपाल कहाँ गये, इस चाण्डाल को निकालते नहीं है' कहते हुए उसने गाथा कही कत्थेव भट्ठा उपजोतियो च उपज्झायो अथवा भण्डकुच्छि, इमस्स दण्डं च वधं च दत्वा गले गहेत्वा खलयाथ जम्मं // 8 // ... [ इस प्रकार उपजोति, उपज्झाय तथा भण्डकुच्छि कहाँ चले गये ? इसे दण्ड दे और मारें। इस दुष्ट को गले से पकड़ कर धुन डालें।] वे भी उसकी बात सुन जल्दी से आ पहुंचे और बोले- "देव ! क्या करें?" . "तुमने इस दुष्ट चाण्डाल को देखा।" "देव ! नहीं देखते हैं। यह भी नहीं जानते हैं कि कहाँ से आया ? यह कोई माया-धारी या जादूगर होगा।" "अब क्या खड़े हो ?" "देव ! क्या करें ?" "इसके मुंह को पीट कर तोड़ दो, डण्डों और बाँस की लाठियों से इसकी पीठ उघाड़ दो, मारो, गले से पकड़ कर इस दुष्ट को धुन डालो। यहाँ से निकाल बाहर करो।" ___ अभी जब वे बोधिसत्व तक पहुंचे ही नहीं थे, बोधिसत्व ने आकाश में खड़े हो गाथा कही गिरि नखेन खणसि अयो दन्तेन खादसि जातवेदं पदहसि यो इसिं परिमाससि // 6 // [जो ऋषि को भला-बुरा कहता है, वह नाखून से पर्वत खोदता है, अथवा दाँत से लोहा काटता है अथवा आग को निगलता है / ] . यह गाथा कह बोधिसत्व उस माणवक और ब्राह्मणों के देखते ही देखते आकाश में जा पहुंचे। इस अर्थ को प्रकाशित करने के लिए शास्ता ने गाथा कही इदं वत्वान मातङ्गो इसि सच्चपरकमो अन्तलिक्खस्मि पक्कामि ब्राह्मणानं उविक्खतं // 10 // [ यह कहकर सत्य-पराक्रमी मातङ्ग ब्राह्मणों की आँख के सामने ही आकाश को चला गया।]
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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