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________________ 268 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . .. "जो पाँच संवरों से सुसंवृत्त होता है, जो असंयम-जीवन की इच्छा नहीं करता, जो काय का व्युत्सर्ग करता है, जो शुचि है और जो देह का त्याग करता है, वह महाजयी श्रेष्ठ यज्ञ करता है।" : सोमदेव ने कहा-"भिक्षो ! तुम्हारी ज्योति कौन-सी है ? तुम्हारा ज्योति-स्थान (अग्नि-स्थान) कौन-सा है ? तुम्हारे घी डालने की करछियाँ कौन-सी हैं ? तुम्हारे अग्नि को जलाने के कण्डे कौन-से हैं ? तुम्हारे इंधन और शान्ति-पाठ कौन-से हैं ? और किस होम से तुम ज्योति को हुत (प्रीणित) करते हो?" मुनि ने कहा-"तप ज्योति है। जीव ज्योति-स्थान है। योग (मन, वचन और काया की सत् प्रवृत्ति) घी डालने की करछियाँ हैं। शरीर अग्नि * जलाने के कण्डे हैं। कर्म इंधन है / संयम की प्रवृत्ति शान्ति-पाठ है। इस प्रकार मैं ऋषि प्रशस्त (अहिंसक) होम करता हूँ।” __ सोमदेव ने कहा-"आपका नद (जलाशय) कौन-सा है ? आपका शान्ति-तीर्थ कौनसा है ? आप कहाँ नहा कर कर्म-रज धोते हैं ? हे यक्ष-पूजित संयत ! हम आपसे जानना चाहते हैं-आप बताइए।" मुनि ने कहा- "अकुलषित एवं प्रात्मा का प्रसन्न-लेश्या वाला धर्म मेरा नद (जलाशय) है। ब्रह्मचर्य मेरा शान्ति-तीर्थ है। जहाँ नहा कर मैं विमल, विशुद्ध और सुशीतल होकर कर्म-रज का त्याग करता हूँ। __“यह स्नान, कुशल पुरुषों द्वारा दृष्ट है। यह महा स्नान है। अतः ऋषियों के लिए यही प्रशस्त है / इस धर्म-नद में नहाए हुए महर्षि विमल और विशुद्ध हो कर उत्तम-स्थान (मुक्ति) को प्राप्त हुए।' -उत्तराध्ययन 12 / 4-47 / मातङ्ग जातक क. वर्तमान कथा उस समय आयुष्मान पिण्डोल-भारद्वाज जेतवन से आकाश-मार्ग से जा बहुत करके कोसाम्बी में उदयन-नरेश के उद्यान में ही दिन बिताने के लिए जाते / पूर्व-जन्म में स्थविर ने राज्य करते हुए दीर्घकाल तक उसी उद्यान में बड़ी मण्डली के साथ सम्पत्ति का मजा लूटा था। वह उस पूर्व (जन्म के) परिचय के कारण वहीं दिन बिताने के लिए रह, फलसमापत्ति सुख में समय बिताते। एक दिन जब वह सुपुष्पित शालवृक्ष के नीचे जाकर बैठे थे, उदयन सप्ताह भर महान पान पी 'उद्यान-क्रीड़ा खेलने के लिए' बड़ी मण्डली के साथ उद्यान पहुंचा और मंगल शिला पर एक स्त्री को गोद में लेटा-लेटा
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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