________________ प्रकरण : पहला कथानक संक्रमण भगवान महावीर का अस्तित्व-काल ई० पू० छठो-पाँचीं शताब्दी ( 527-455) है। उस समय अनेक मत प्रचलित थे। सभी धर्म-प्रवर्तकों का अपना-अपना साहित्य था। उस साहित्य को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है (1) वैदिक-साहित्य (2) जैन-साहित्य. (3) बौद्ध-साहित्य (4) श्रमण-साहित्य उस समय सभी सम्प्रदाय दो धाराओं में बंटे हुए थे (1) वैदिक (2) श्रमण वैदिक-सम्प्रदाय के अन्तर्गत वेदों का प्रामाण्य स्वीकार करने वाले कई सम्प्रदाय थे। श्रमण-सम्प्रदाय में जैन, बौद्ध, आजोवक, गैरिक, परिव्राजक आदि-आदि थे। वैदिकमान्यता के प्रतिनिधि ग्रन्थ वेद सबसे प्राचीन माने जाते हैं। कालानुक्रम से अनेक ऋषिमहषियों ने 'ब्र ह्मण', 'आरण्यक', 'कल्पसूत्र' आदि को रचनाएं कीं और वैदिक-साहित्य को अपनी उपलब्धियों से समृद्ध किया। भगवान महावीर की वाणी का संग्रह कर जन-आचार्यो' ने उसे 'अङ्ग' और 'अङ्गबाह्य' आगम के रूप में प्रस्तुत किया और इरो 'निग्रन्थ-प्रवचन' की संज्ञा दी। .' महात्मा बुद्ध के उपदेशों को संग्रहीत कर बौद्ध मनीषियों ने उसे 'त्रिपिटक' की संज्ञा दी। ____ भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध से पूर्व जो वैदिकेतर-साहित्य था उसे श्रमणसाहित्य की श्रेणी में रखा गया। प्रो० ई० ल्यूमेन ने इसे 'परिव्राजक-साहित्य' कहा और डॉ. विन्टरनिट्ज़ ने इसे 'श्रम ग-साहित्य' (Ascetic literature) की संज्ञा दी।' g. Some Problems of Indian Literature # 'Ascetic literature of ancient India', p. 21 ( Calcutta University Press 1925 ).