________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन लौकिक व्यवसाय के तीन प्रकार हैं (1) अर्थ, (2) धर्म और (3) काम। वैदिक व्यवसाय के तीन प्रकार हैं (1) ऋगवेद, (2) यजुर्वेद और (2) सामवेद / सामयिक व्यवसाय के तीन प्रकार हैं (1) ज्ञान, (2) दर्शन और (3) चारित्र। त्रिवर्ग के लिए यहाँ त्रिविध व्यवसाय का प्रयोग किया गया है। धर्म को लौकिक व्यवसाय माना गया है। इससे स्पष्ट है कि त्रिवर्ग के साथ जो धर्म है, वह मोक्ष-धर्म नहीं किन्तु परम्परागत आचार-धर्म या सामाजिक विधि-विधान है। इस आशय का समर्थन महाभारत के एक पद्यांश से भी होता है-"लोकयात्रार्थमेवेह, धर्मस्य नियमः कृतः।" (महाभारत, शान्तिपर्व, 259 / 4) ___ कुछ विद्वान् महाभारत के उक्त पद्यांश के आधार पर यह स्थापित करने का प्रयल करते हैं कि धर्म समाज धारणा का तत्व है। किन्तु यह सही नहीं है। उक्त पद्यांश का हृदय स्यानांग के लौकिक व्यवसाय के संदर्भ में ही समझा जा सकता है। महाभारत में धर्म को लोकयात्रार्थ कहा गया है और स्थानांग में लौकिक / यह धर्म समाज-धारणा के लिए है—यह मानने में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हो सकती। विचार-भेद वहीं है, जहाँ मोक्ष-धर्म को समाज-धारणा का तत्त्व कहा जाता है तथा उसी उद्देश्य से मोक्ष धर्म की उत्पत्ति बतलाई जाती है। लगता तो यह है कि त्रिवर्ग में जो धर्म है, वह चतुर्विध पुरुषार्थ की मान्यता के पश्चात् मोक्ष-धर्म के अर्थ में समझा जाने लगा है। धर्म से अर्थ और काम प्राप्त होते हैं-यहाँ धर्म का अर्थ परम्परागत आचार, व्यवस्था व विधि-विधान ही होना चाहिए। निर्वाणवाद के उत्कर्षकाल में जब त्रिवर्ग के साथ मोक्ष जुड़ा, चतुर्विध पुरुषार्थ की स्थापना हुई, तब धर्म का अर्थ व्यापक हो गया। वह सामाजिक विधि-विधान व मोक्ष-धर्म---ये दोनों अर्थ देने लगा। मनुस्मृति में त्रिवर्ग के विषय में अनेक धारणाएँ बतलाई गई हैं। कुछ आचार्य मानते