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________________ 206 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययनै जिसे प्राप्त कर शोक से मुक्त हो जाते हैं, जो लोक के शिखर में शाश्वत रूप से अवस्थित हैं, जहाँ पहुंच पाना कठिन है, उसे में 'स्थान' कहता हूँ।" ___ इसी भावना के संदर्भ में मृगापुत्र ने अपने माता-पिता से कहा था-"मैंने चार अन्त वाले और भय के आकर जन्म-मरण रूपी जंगल में भयंकर जन्म-मरणों को सहा है। "मनुष्य जीवन असार है, व्याधि और रोगों का घर है, जरा और मरण से ग्रस्त है। इसमें मुझे एक क्षण भी आनन्द नहीं मिल रहा है / "मैंने सभी जन्मों में दुःखमय वेदना का अनुभव किया है। वहाँ एक निमेष का अन्तर पड़े उतनी भी सुखमय वेदना नहीं है / " 2 ___ उसका मन संसार में इसीलिए नहीं रम रहा था कि उसकी दृष्टि में यहाँ क्षण-भर के लिए भी सुख का दर्शन नहीं हो रहा था। बन्धन-मुक्ति की अवस्था में उसे सुख का अविरल स्रोत प्रवाहित होता दीख रहा था। ___ महामुनि कपिल ने चोरों के सामने एक प्रश्न अस्थित किया था-इस दुःखमय संसार में ऐसा कौन-सा कर्म है, जिससे मैं दुर्गति में न जाऊँ / 3 यह प्रश्न निराशा की ओर संकेत नहीं करता, किन्तु इसका इंगित एकान्त सुख की ओर है। भगवान् ने कहा था-पूर्ण ज्ञान का प्रकाश, अज्ञान और मोह का नाश तथा राग और द्वेष का क्षय होने से आत्मा एकान्त सुखमय मोक्ष को प्राप्त होता है। धर्म का आलम्बन उन्हीं व्यक्तियों ने लिया, जो दु:खों का पार पाना चाहते थे।५ उक्त विश्लेषण से यह फलित होता है कि सर्व-दुःख-मुक्ति धर्म करने का प्रमुख उद्देश्य रहा है।६ . परलोकवादी दृष्टिकोण धर्म की धारणा का मुख्य हेतु रहा है-परलोकवादी दृष्टिकोण। परलोकवाद आत्मा की अमरता का सिद्धान्त है। अनात्मवादी आत्मा को अमर नहीं मानते / अतः उनकी धारणा में इहलोक और परलोक--यह विभाग वास्तविक नहीं है। उनके अभिमत में वर्तमान जीवन अतीत और अनागत की श्रृङ्खला से मुक्त है। आत्मवादी धारणा इससे भिन्न है। उसके अनुसार आत्मा शाश्वत है। मृत्यु के पश्चात् उसका अस्तित्व समाप्त १-उत्तराध्ययन, 23 // 80-84 / २-वही, 19646,14,74 / ३-वही, 8 / 1 / ४-वही, 32 / 2 / ५-वही, 14 / 51-52 / ६-वही, 32 / 110-111 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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