________________ 176 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन शुक्ल-ध्यान के चार लक्षण हैं (क) अव्यथ-- क्षोभ का अभाव / (ख) असम्मोह- सूक्ष्म पदार्थ विषयक मूढ़ता का अभाव / (ग) विवेक- शरीर और आत्मा के भेद का ज्ञान / (घ) व्युत्सर्ग- शरीर और उपाधि में अनासक्त भाव / शुक्ल-ध्यान के चार आलम्बन हैं (क) क्षान्ति- क्षमा / (ख) मुक्ति- निर्लोभता / (ग) मार्दव- मृदुता। (घ) आर्जव- सरलता। शुक्ल-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं-- (क) अनन्तवृत्तिता अनुप्रेक्षा- संसार परम्परा का चिन्तन करना / (ख) विपरिणाम अनुप्रेक्षा- वस्तुओं के विविध परिणामों का चिन्तन / (ग) अशुभ अनुप्रेक्षा- पदार्थों की अशुभता का चिन्तन करना। (घ) अपाय अनुप्रेक्षा- दोषों का चिन्तन करना। आगम के उत्तरवर्ती साहित्य में ध्यान चतुष्टय का दूसरा वर्गीकरण भी मिलता है / उसके अनुसार ध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं-(१) पिण्डस्थ, (2) पदस्थ, (3) रूपस्थ और (4) रूपातीत / ___तंत्र-शास्त्र में भी पिण्ड, पद, रूप और रूपातीत- ये चारों प्राप्त होते हैं। दोनों के अर्थ-भेद को छोड़कर देखा जाए तो लगता है कि जैन-साहित्य का यह वर्गीकरण तंत्रशास्त्र से प्रभावित है। ध्यान के विभाग ध्येय के आधार पर किए गए हैं। धर्म-ध्यान के जैसे चार ध्येय १-नवचक्रेश्वरतंत्र: पिण्डं पदं तथा रूपं, रूपातीतं चतुष्टयम् / यो वा सम्यग विजानाति, स गुरुः परिकीर्तितः / पिण्डं कुण्डलिनी-शक्तिः, पदं हंसः प्रकीर्तितः / रूपं बिदुरिति ज्ञेयं, रूपातीतं निरञ्जनम् // २-योगशास्त्र 107 / / आज्ञापायविपाकानां, संस्थानस्य चिन्तनात् / इत्थं वा ध्येयभेदेन, धर्म्य ध्यानं चतुर्विधम् //