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________________ प्रकाशकीय प्रस्तुत "उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन" आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला का द्वितीय ग्रन्थ है। 'दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन" इस ग्रन्थमाला का प्रथम ग्रन्थ है, जो पहले प्रकाशित हो चुका है और अपनी तरह का अद्वितीय होने के कारण विद्वान् और जनसाधारण सभी श्रेणियों के पाठकों द्वारा समाप्त हुआ है। ___ इस ग्रन्यमाला के प्रथम ग्रन्थ के समान ही "उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन" अपनी तरह का अनुपम और अभूतपूर्व ग्रन्थ है, जो हिन्दी-साहित्य को एक नवीन देन है। यह उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि हिन्दी में ही नहीं, अपितु, किसी भी भाषा में-उत्तराध्ययन पर समीक्षात्मक अध्ययन अद्यावधि प्रकाशित नहीं हुआ है। __ यों तो प्रस्तुत ग्रन्थ-गत विषयों का ज्ञान आद्योपान्त पठन से ही होगा; फिर भी चर्चित विषयों के सम्बन्ध में किञ्चित आभास ग्रन्थ के सम्पादक विद्वान् मुनि श्री नथमलजी, निकाय सचिव ने अपने सम्पादकीय वक्तव्य में दे दिया है। फिर भी इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय तथ्य इस प्रकार हैं __ ग्रन्थ दो खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में श्रमण और वैदिक परम्पराएँ, श्रमण संस्कृति का प्रागऐतिहासिक अस्तित्व, श्रमण-संस्कृति के मतबाद, आत्म-विद्या, तत्त्व-विद्या, जेन-धर्म का प्रसार-प्रचार, साधना-पद्धति, योग आदि अतीव महत्त्वपूर्ण और गम्भीर विषयों पर सविस्तार और प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध की गई है। द्वितीय खण्ड में व्याकरण, छन्दोविमर्श, परिभाषा, कथानक संक्रमण, भौगोलिक व व्यक्ति परिचय, तुलनात्मक व सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। ___उत्तराध्ययन जैनों का मूल सूत्र है, जिसका गम्भीर और तलस्पर्शी अध्ययन इस अन्य के पढ़ने से होगा तथा तात्कालिक श्रमण संस्कृति, समाज व्यवस्था, शिल्प, मतवाद, आचार, विचार, धार्मिक-आध्यात्मिक उन्मेष आदि का भी सम्यक् बोध हो सकेगा। इस तरह यह ग्रन्य प्राचीन इतिहास, धर्म, दर्शन, तत्त्व-विद्या, भाषा, व्याकरण और जैन, बौद्ध एवं वैदिक विचारधारा में पल्लवित अथवा तत्कालीन चर्चित विषयों का तुलनात्मक तथा समीक्षात्मक अध्ययन करने वाले अन्वेषक और साधारण पाठक के लिए बहुत उपयोगी * और दिशा सूचक होगा। पाण्डुलिपि की प्रतिलिपि सन्तों द्वारा प्रस्तुत पाण्डुलिपि को नियमानुसार अवधार कर उसकी प्रतिलिपि करने का कार्य आदर्श साहित्य संघ, 'चुरू' द्वारा सम्पन्न हुआ है, जिसके लिए हम संघ के संचालकों के प्रति कृतज्ञ हैं। अर्थ-व्यवस्था इस ग्रन्थ के प्रकाशन का व्यय विराटनगर ( नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा द्वारा श्री हंसराजजी हुलासचन्दजी गोलछा की स्वर्गीया माता श्री
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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