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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 6 २-पार्व और महावीर का शासन-भेद 126 हैं। यदि मोक्ष को वास्तविक साधना की प्रतिज्ञा हो तो निश्चय-दृष्टि में उसके साधन, ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही हैं। ___भगवान पार्श्व के शिष्य बहुमूल्य और रंगीन-वस्त्र रखते थे। भगवान् महावीर ने अपने शिष्यों को अल्पमूल्य और श्वेत वस्त्र रखने की अनुमति दी। _____डॉ० हर्मन जेकोबो का यह मत है कि भगगन महावीर ने अचेलकता या नग्नत्व का आचार आजीवक आचार्य गोशालक से ग्रहण किया।२ किन्तु यह संदिग्ध है। भगवान महावीर के काल में और उनसे पूर्व भी नग्न साधुओं के अनेक सम्प्रदाय थे। भगवान् महावीर ने अचेलकता को किसी से प्रभावित होकर अपनाया या अपनी स्वतंत्र बुद्धि से ? इस प्रश्न के समाधान का कोई निश्चित स्रोत प्राप्त नहीं है, किन्तु इतना निश्चित है कि महावीर दीक्षित हुए तब सचेल थे, बाद में अचेल हो गए। भगवान ने अपने शिष्यों के लिए भी अचेल आचार की व्यवस्था की, किन्तु उनकी अचेल व्यवस्था दूसरे-दूसरे नग्न साधुओं की भाँति एकान्तिक आग्रहपूर्ण नहीं थी। गौतम ने केशी से जो कहा, उससे यह स्वयं सिद्ध है। जो निग्रन्थ निर्वस्त्र रहने में समर्थ थे, उनके लिए पूर्णत: अचेल (निर्वस्त्र) रहने की व्यवस्था थी और जो निम्रन्थ वैसा करने में समर्थ नहीं थे, उनके लिए सीमित अर्थ में अचेल (अल्पमूल्य और श्वेत वस्त्रधारी) रहने की व्यवस्था थी। ___भगवान् पार्श्व के शिष्य भगवान् महावीर के तीर्थ में इसीलिए खप सके कि भगवान् महावीर ने अपने तीर्थ में सचेल और अचेल-इन दोनों व्यवस्थाओं को मान्यता दी थी। इस सचेल और अचेल के प्रश्न पर ही निर्ग्रन्थ-संघ श्वेताम्बर और दिगम्बर- इन दो शाखाओं में विभक्त हुआ था। श्वेताम्बर-साहित्य के अनुसार जिन-कल्पी साधु वस्त्र नहीं रखते थे और स्थविर-कल्पी साधु वस्त्र रखते थे। दिगम्बर साहित्य के अनुसार सब साधु वस्त्र नहीं रखते थे। इस विषय पर पार्ववर्ती परम्पराओं का भी विलोडन करना अपेक्षित है। पूरणकश्यप ने समस्त जीवों का वर्गीकरण कर छह अभिजातियाँ निश्चित की थीं। उसमें तीसरी-लोहित्याभिजाति-में एक शाटक रखने वाले निग्रन्थों का उल्लेख किया है। 1. उत्तराध्ययन, 23 / 29-33 / २-दी सेक्रेड बुक ऑफ दी ईस्ट, भाग 45, पृ० 32 : ... It is probable that be borrowed them from the Akelakas or Agivikas, the followers of Gosala... ३-अंगुत्तरनिकाय, 6 / 63, छल भिजाति सुत्त, भाग 3, पृ० 86 / ४-वही, 6 / 6 / 3 : तत्रिदं भन्ते, पूरणेन कस्सपेन लोहिताभिजाति पञ्चत्ता, निगण्ठा एक साटका।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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