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________________ 54 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन सत्य-प्रवाद ( छठे) पूर्व से और शेष सब अध्ययन प्रत्याख्यान ( नवे ) पूर्व की तीसरी वस्तु से उद्धृत किए गए हैं।' इस प्रकार नियुक्तिकार के अभिमत से दशवकालिक के तीन अध्ययनों को छोड़ शेष सभी अध्ययनों और निशीथ का निर्यहण नवें पूर्व की तीसरी वस्तु से हुआ है। दशवकालिक में आचार का निरूपण है और निशीथ में आचार-भंग की प्रायश्चित्त-विधि है। दोनों का विषय आपस में गुंथा हुआ है। पिण्डषणा और भाषाजात का समावेश आचारांग की पहली चूला में होता है / आचारांग के दूसरे अध्ययन ( लोक-विजय ) के पाँचवें उद्देशक और आठवें ( विमोह ) १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 16,17 : (क) आयप्पवायपुव्वा निज्जूढा होइ धम्मपन्नत्ती। कम्मप्पवायपुव्वा पिंडस्स उ एसणा तिविहा॥ सच्चप्पवायपुव्वा निज्जूढा होइ वक्कसुद्धी उ। अवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्थूओ // (ख) अगस्त्य चुर्णि : आयप्पवाय पुव्वा गाहा। सच्चप्पवात। बितिओ विय आदेसो। आयप्पवाय पुव्वातो धम्मपण्णत्ती निज्जूढा, सा पुण छ जीवणिया। कम्मप्पवायपुवाओ पिण्डेसणा। आह चोदगो कम्मप्पवायपुव्वे कम्मे वणिज्जमाणे को अवसरो पिण्डेसणाए ? गुरवो आणवेंति असुद्ध पिण्डपरिभोगो कारणं कम्मबंधस्स, एस अवकासो। भणियं च पण्णत्तीए"आहाकम्भ णं भंते ! भुंजमाणे कतिकम्म" (भग० 1 / 9 / 79) सुत्तालावओ विभासितव्वो // 5 // सच्चपवायाओ वक्कसुद्धी। अवसेसा अझयणा पच्चक्खाणस्स ततियवत्यूता। २-आचारांग नियुक्ति, गाथा 11, वृत्ति : . तत्र प्रथमा-"पिण्डेसण सेज्जिरिया, भासज्जाया य वत्थपाएसा / " उग्गहपडिमत्ति सप्ताध्ययनात्मिका, द्वितीया सत्तसत्तिक्काया, तृतीया भावना, चतुर्थी विमुक्तिः, पंचमी निशीथाध्ययनम् /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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