________________ ६-शरीर-परामर्श दशवकालिक के दश अध्ययन हैं। उनमें पाँचवे के दो और नर्वे के चार उद्देशक हैं, ष अध्ययनों के उद्देशक नहीं हैं। चौथा और नवाँ अध्ययन गद्य-पद्यात्मक है, शेष सब पद्यात्मक हैं। उनका विवरण इस प्रकार है: अध्ययन श्लोक १-द्रुमपुष्पिका २–श्रामण्य-पूर्वक 11 ३–शुल्लकाचार ४-धर्म-प्रज्ञप्ति या षड्-जीवनिका 28 ५-पिण्डषणा ६-महाचार 7- वाक्यशुद्धि ८-आचार-प्रणिधि . ६-विनय-समाधि १०–सभिक्षु चूलिका १–रतिवाक्या २-विविक्तचर्या 16 . चूर्णिकार और टीकाकार पद्य-संख्या के बारे में एक मत नहीं हैं। नियुक्तिकार ने जैसे अध्ययनों के नाम, उनके विषय और अधिकारों का निरूपण किया है, वैसे ही इनकी श्लोक-संख्या का परिमाण बताया होता तो चर्णिकार और टीकाकार की दिशाएँ इतनी भिन्न नहीं होती। टीकाकार के अनुसार दशवैकालिक के पद्यों की संख्या 506 और चूलिकाओं की 34 है। जबकि चूर्णिकार के अनुसार क्रमशः 536 और 33 होती हैं। बहुत अन्तर पाँचवें और सातवें अध्ययन में है। पाँच अध्ययन के पहले उद्देशक की पद्यसंख्या 130, दूसरे की 48; सातवें अध्ययन की 56 और पहली चूलिका की 17 है / शास्त्रों के नाम निर्देश्य और निर्देशक दोनों के अनुसार होते हैं / ' दशवैकालिक के अध्ययनों के नाम प्राय: निर्देश्य के अनुसार हैं। इसलिए अध्ययन के नाम से ही विषय १-आवश्यक नियुक्ति, गाथा 141, वृत्ति पत्र 149 : निद्देश्यवशानिर्देशकवशाच्च द्विप्रकारमपि नैगमनयो निर्देशमिच्छति / ...... लोकोत्तरेऽपि निद्देश्यवशाद्, यथा-षड्जीवनिका तत्र हि षट्-जीवनिकाया निद्देश्याः। xxurr. 15. 0 5.9 Deo