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________________ दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन परिव्वयंतो (2 / 4) ___ अगस्त्यसिंह स्थविर ने 'परिव्वयंतो' के अनुस्वार को अलाक्षणिक माना है।' वैकल्पिक रूप में इसे मन के साथ जोड़ा है / जिनदास महत्तर 'परिव्ययंतो' को प्रथमा का एकवचन मानते हैं और अगले चरण से उसका सम्बन्ध जोड़ने के लिए 'तस्स' का अध्याहार करते हैं / कडुअं (4 / 1-6) यहाँ अनुस्वार अलाक्षणिक है।४ लाममट्टिओ (5 / 1 / 64) यहाँ मकार अलाक्षणिक है / विउलं (5 / 2 / 43) अगस्त्य चूणि के अनुसार यहाँ मकार अलाक्षणिक है। एसमाघाओ (6 / 34) यहाँ मकार अलाक्षणिक है। आहारमाईणि (6 / 46) यहाँ मकार अलाक्षणिक है। एयमढें (6 / 52) यहाँ मकार अलाक्षणिक है। मंचमासालएसु (6 / 53) यहाँ मकार अलाक्षणिक है। बुद्धवुत्तमहिढगा (6 / 54) यहाँ मकार अलाक्षणिक है। १-अगस्त्य चूर्णि : वृत्तमंगभयात् अलक्खणो अनुस्सारो। २-वही : अहवा तदेव मणोऽभिसंबज्झति / 3. जिनदास चूर्णि, पृ० 84 : परिव्वयंतो नाम गामणगरादीणे उवदेसेणं विचरतो'त्ति वुत्तं भवइ तस्म / ४-हारिभद्रीय टीका, पत्र 140, 156 : लाक्षणिकः।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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