________________ दशकालिक : एक साक्षात्मक अध्ययन बुद्ध वयणे (10 / 6) यहाँ तृतीया के अर्थ में सप्तमी विभक्ति है / / तस्स (चू०२।३) यहाँ पंचमी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति है / / गुणओ समं (चू०२।१०) * यहाँ तृतीया के अर्थ में पंचमी विभक्ति है। किं मे कडं (चू०२।१२) यहाँ 'मे' में तृतीया के अर्थ में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग हुआ है। ३-वचन जे न भुंजन्ति न से चाइ त्ति वुच्चइ (2 / 2) _ 'भुंजन्ति' बहुवचन है और 'से चाइ' एकवचन / टीकाकार बहुवचन एकवचन की असंगति देख कर उसका स्पष्टीकरण करते हुए लिखते हैं-सूत्र की गति-रचना विचित्र प्रकार की होने से तथा मागधी का संस्कृत में विपर्यय भी होता है, इसलिए ऐसा हुआ है।" . 'से चाइ' यहाँ बहुवचन के स्थान में एकवचन का प्रयोग हुआ है यह व्याख्याकारों का अभिमत है। अगस्त्यसिंह स्थविर ने बहुवचन के स्थान में एकवचन का आदेश माना है।६ जिनदास महत्तर ने एकवचन के प्रयोग का हेतु आगमा रचना-शैली का वैचित्र्य १-हारिभद्रीय टीका, पत्र 266 : __बुद्धवचन इति तृतीयार्थे सप्तमी / २-वही, पत्र 279 : तस्येति पञ्चम्यर्थे षष्ठी। ३-वही, पत्र 282 : ___ गुणतः समं वा तृतीयार्थे पंचमी गुणैस्तुल्यं वा / .. ४-वही, पत्र 283 : 'sp किं मे कृतमिति छान्दसत्वात् तृतीयार्थे षष्ठी : ५-वही पत्र 91 : किं बहुवचनोद्देशेऽप्येकवचन निर्देश : ?, विचित्रत्वात्सूत्रगतेविर्ययश्च भवत्येवेति कृत्वा। ६-अगस्त्य चूर्णि: बहुवयणस्सत्थाणे एगवयणमादिटुं /