________________ दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन . आचार्य शय्यम्भव ने इस सूत्र के द्वारा मनक को वही उपदेश दिया, जो भगवान् ने मेघकुमार को दिया था। दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि भगवान् महावीर नव-दीक्षित श्रमणों को जो प्रारम्भिक उपदेश देते थे, उसे आचार्य शय्यम्भव ने प्रशस्त शैली में संकलित कर दिया। उक्त श्लोकों के अगले अध्ययनों में आचार-संहिता की आधारभूत इन्हीं ( चलने-बोलने आदि को ) प्रवृत्तियों का विस्तार है। उत्तराध्ययन,' धम्मपद,२ महाभारत आदि के लक्षण-निरूपणात्मक-अध्यायों में व्यवस्थित शैली का जो रूप है, वह दशवकालिक में भी उपलब्ध होता है ( देखिए 6 / 3 में. पूज्य और १०वें में भिक्षु के लक्षणों का वर्गीकरण ) / इसकी रचना प्रायः सूत्र रूप है, पर कहीं-कहीं व्याख्यात्मक भी है / अहिंसा, परिग्रह आदि की बहुत ही नपे-तुले शब्दों में परिभाषा और व्याख्या यहाँ मिलती है ( देखिए 6 / 8 ; 6 / 20) / कहीं-कहीं अनेक श्लोकों का एक श्लोक में संक्षेप. किया गया है। इसका उदाहरण आठवें अध्ययन का 26 वाँ श्लोक है कण्णसोक्खेहिं सद्दे हिं पेमं नाभिनिवेसए / दारुणं कक्कसं फासं काएण अहियासए / यहाँ आदि और अन्त का अर्थ प्रतिपादित किया गया है। पूर्ण रूप में उसका प्रतिपादन पाँच श्लोकों के द्वारा हो सकता है। निशीथभाष्य चूर्णि तथा बृहद्कल्पभाष्य वृत्ति५ में इस आशय का उल्लेख और पाँच श्लोक मिलते हैं--- कण्णसोक्खेहिं सद्देहि पेम्म णाभिणिवेसए / दारुणं कक्कसं सद्द सोएणं. अहियासए / चक्खुकतेहिं स्वेहिं पेम्मं णाभिणिवेसए। दारुणं कक्कसं रूवं चक्खुणा अहियासए / घाणकतेहिं गंधेहिं पेम्म णाभिणिवेसते / दारुणं कक्कसं गंध घाणेणं अहियासए / 1-15 वें में भिक्षु और 25 वें में ब्राह्मण के लक्षणों का निरूपण / २-बाह्मण वर्ग। यह मौलिक नहीं, किन्तु संकलित है। ३-शान्ति पर्व, मोक्षधर्म, अध्याय 245 / ४-निशीथभाज्य चूर्णि, भाग 3, पृष्ठ 483 / ५-बृहद्कल्प, भाग 2, पृष्ठ 273,274 /