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________________ .1. बहिरङ्ग परिचय : जैन आगम और दशवकालिक परम प्रहर में ही पढ़े जा सकते हैं। किन्तु दशवकालिक उत्कालिक आगम है इसलिए यह थस्वाध्यायी के अतिरिक्त सभी प्रहरों में पढ़ा जा सकता है। व्याख्या की दृष्टि से आगम चार भागों में विभक्त किए गए हैं--- १-चरणकरणानुयोग ३-गणितानुयोग २-धर्मकथानुयोग ४-द्रव्यानुयोग भगवान् महावीर से लेकर आर्यरक्षित से पहले तक यह विभाग नहीं था। पहले एक साथ चारों अनुयोग किए जाते थे। आर्यरक्षित ने बुद्धि-कौशल की कमी देख अनुयोग के विभाग कर दिए। उसके बाद प्रत्येक अनुयोग को अलग-अलग निरूपण करने की परम्परा चली। इस परम्परा के अनुसार दशवकालिक का समावेश चरणकरणानुयोग में होता है। इसमें चरण ( मूलगण ) और करण ( उत्तरगण 3 ) इन दोनों का अनुयोग है। आगे चलकर आगमों का और वर्गीकरण हुआ। उसके अनुसार अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य के अतिरिक्त मूल और छेद ----ये दो वर्ग और किए गए / दशवकालिक 'मूल' आगम सूत्र माना जाता है।४ . १-अगस्त्य चूर्णिः उद्दिट्ठ-समुद्दिटु-अगुण्णा तस्स अगुयोगो भवति तेण अहिगारो। सो चउब्विहो, तंजहा–चरणकरणाणुओगो सो य कालिय सुयादि 1, धम्मणुओगो इसिभासियादि 2, गणियाणुओगो सूरपण्णत्तियादि 3, दवियाणुओगो दिढवादो 4, स एव समासओ दुविहो पुहत्ताणुओगो अपुहत्ताणुओगो य। जं एकत्तपट्टवित्ते चत्तारि वि भासिज्जंति एतं अमहत्तं, तं पुण भट्टारगाओ जाव अज्जवइरा। ततो आरेण पृहत्तं जत्थ पत्तेयं पभासिज्जत्ति। भासणाविहिपहत्तकरणं अज्जर क्खिय पूस भित्ततिकविंझादिविसेसत्ता झण्णति / इह चरणकरणाणुओगेण अधिकारो। * '२-प्रवचनसारोद्धार, गाथा 552 : चरणं मूलगुणाः / वय समण-धम्म संयम, वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। णाणाइतियं तव, कोहनिग्गहाई चरणमेयं // ३-वही, गाथा 563 : करणं उत्तरगुणाः / पिंडविसोही समिई, भावण पडिमा इ इंदियनिरोहो। पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु // ४-देखो-'दसवेआलिय तह उत्तरायणाणि' की भूमिका, पृ० 1-9 /
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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