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________________ 204 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन होते थे। उनमें परिघ लगा हुआ होता था और गोपुर के किंवाड़ आदि के आगल लगी हुई होती थी।' घरों के द्वार शाणी और प्रावार से आच्छादित रहते थे। शाणी अतसी और वल्क से तथा प्रावार मृग के रोंए से बनते थे / 2 निर्धन व्यक्तियों के घर काँटों की डाली से ढके रहते थे / घर गोबर से लीपे जाते थे। .. घरों में स्नान-गृह और शौच-गृह होते थे / भिक्षु घर की मर्यादित भूमि में ही जा सकते थे। उसका अतिक्रमण सन्देह का हेतु माना जाता था / .. ... घरों में फूलों का प्रचुर मात्रा में व्यवहार होता था। कणवीर, जाति, पाटल कमल,उत्पल, गर्दभक, मल्लिका, शाल्मली आदि पुष्प व्यवहृत होते थे। रसोई घर को उत्पल से सझाया जाता था। घर भाड़े पर भी मिल जाते थे। कई अपवरकों के द्वार अत्यन्त नीचे होते थे / वहाँ भोजन सामग्री रहती थी। उपकरण: बिना अवष्टंभ वाली कुरसी ( आसंदी ), आसालक-अवष्टंभयुक्त, पर्यक, पीठ आदि आसन लकड़ी से बनाए जाते थे और बत या डोर से गूंथे जाते थे। कालान्तर में वे कहीं-कहीं खटमल आदि से भर जाते थे / ' पीढा पलाल 9 या बेत का होता था।१० १-हारिभद्रीय टीका, पत्र 184 / २-(क) हारिभद्रीय टीका,पत्र 166-167 / (ख) अगस्त्य चूर्णि-सरोमोपावारतो। ३-दशवैकालिक, 5 / 1 / 21 / ४-वही, 5 / 1 / 24-25 / ५-वही, 5 / 1 / 21:5 / 2 / 14-16 / ६-हारिभद्रीय टीका, पत्र 264 : __ भाटकगृहं वा। ७-दशवकालिक, 5 / 1 / 20 / ८-(क) दशवैकालिक, 6 / 54-55 / (ख) जिनदास चूर्णि, पृ० 288-289 / ६--जिनदास चूर्णि, पृ० 229 : पीढगं पलाल पीठगादि। १०--हारिमद्रीय टीका, पत्र 204 : पीठके-वेत्रमयादौ।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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