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________________ ६-एकार्थक आगमों में तथा उनके व्याख्या-ग्रन्थों में एकार्थक शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है। प्रथम दृष्टि में वे कुछ सार-हीन से लगते हैं परन्तु जब उनके अंतस्तल तक पहुंचा जाता है तब यह ज्ञात होता है कि यह पद्धति ज्ञान-वृद्धि में बहुत ही सहायक रही है। इस पद्धति के माध्यम से विद्यार्थियों को कोष कण्ठस्थ करा दिया जाता था। एकार्थक शब्द संकलना का यह भी प्रयोजन था कि गुरु के पास अनेक देशीय शिष्य पढ़ते थे उनको अपनी-अपनी भाषा में व्यवहृत शब्दों के माध्यम से सहज ज्ञान कराया जा सके, इसलिए नाना देशीय शब्दों को एकार्थक कहकर संकलन कर दिया जाता था। इसे शब्दकोष के निर्माण का प्रारम्भिक रूप माना जा सकता है। नीचे एकार्थक शब्दों की तालिका दी जा रही है : पज्जवोत्ति वा भेदोत्ति वा गुणोत्ति वा एगट्ठा।' णाणंति वा संवेदणंति वा अधिगमोत्ति वा चेतणंति वा भावत्ति वा एते सद्दा एगट्ठा / 2 अहिंसाइ वा अज्जीवाइवातोत्ति वा पाणातिपातविरइत्ति वा एगट्ठा। अवड्ढंति वा अद्धति वा एगट्ठा / / आलोयणंति वा पगासकरणंति वा अक्वणंति वा विसोहित्ति वा एगट्ठा / 5 मइत्ति वा मुत्ति (सइ) त्ति वा सण्णत्ति वा आभिणिबोहियणाणंति वा एगट्ठा / 6 परिझति वा पत्थणंति वा गिद्धित्ति वा अभिलासोत्ति वा लेप्पत्ति वा कंखंति वा एगट्ठा। विवस्सग्गोत्ति वा विवेगोत्ति वा अधिकिरणंति वा छडणंति वा वोसिरणंति वा एगट्ठा / चेयण्णंति वा उवयोगोत्ति वा अक्खरत्ति वा एगट्ठा। अपिबति आदियतित्ति एगट्टा / 10 अत्थयतित्ति वा मग्गइत्ति वा एगट्ठा / 11 चयाहित्ति वा छड्डेहित्ति वा जहाहित्ति वा एगट्ठा / 12 १-जिनदास चूर्णि, पृ०४। ७-वही, पृ०३०। २-वही, पृ०१०। ८-वही, , 37 // ३-वही, , 20 // ९-वही, , 46 / ४-वही, , 22 // १०-वही, , 63 / ५-वही, ,, 25 / ११-वही, , 74 / ६-वही, ,, 29 / १२-वही, , 86 / .. .
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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