________________ 160 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन ... (3) शरीर-काय-शरीर स्वप्रायोग्य अणुओं का संघात होने के कारण शरीर-काय कहलाता है। .... (4) गति-काय-जिन शरीरों से भवान्तर में जाया जाता है अथवा जिस गति में जो शरीर होते हैं, उन्हें गति-काय कहते हैं। . (5) निकाय-काय-षड्जीवनिकाय-पृथ्वी, जल, तेजस् , वायु, वनस्पति और त्रस को निकाय-काय कहते हैं। (6) अस्ति-काय-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि पाँच अस्ति-काय हैं। (7) द्रव्य-काय-तीन आदि द्रव्य एकत्र हों उन्हें द्रव्य-काय कहा जाता है, जैसेतीन घट, तीन पट आदि-आदि / (5) मातृका-काय-तीन आदि मातृका अक्षरों को मातृका-काय कहते हैं। (8) पर्याय-काय-यह दो प्रकार का होता है (क) जीवपर्याय-काय—जीव के तीन आदि पर्यायों को जीवपर्याय-काय कहते हैं / जैसे—ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि। (ख) अजीवपर्याय-काय-अजीव के तीन आदि पर्यायों को अजीवपर्याय-काय कहते हैं / जैसे-रूप, रस, गन्ध आदि-आदि / (10) संग्रह-काय-तीन आदि द्रव्य एक शब्द से संग्रहीत होते हैं, उसे 'संग्रहकाय' कहते हैं। जैसे—त्रिकूट-सोंठ, पीपल और कालीमिर्च। त्रिफला हरडे, बहेडा और आँवला। अथवा चावल आदि की राशि को भी 'संग्रहकाय' कहते हैं। . (11) भार-काय–वृत्तिकार ने इसका अर्थ काँवर किया है। चूर्णिकार ने इसका अर्थ विस्तार से किया है __"एक कहार तालाब से दो घड़े पानी से भर, उन्हें अपनी काँवर में रख घर आ रहा था। एक ही अपकाय दो भागों में विभक्त हुआ था। उसका पैर फिसला, एक घड़ा फूट गया। उसमें जो अपकाय था, वह मर गया। दूसरे घड़े में जो अपकाय था, वह जीवित रहा। काँवर में अब एक ही घड़ा रह गया। संतुलन के अभाव में वह भी फूट गया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह पहले जो अपकाय मरा था, उसी ने दूसरे घड़े के अपकाय को मार डाला।" प्रकारान्तर से इस प्रकार कहा जा सकता है "एक घड़े में अपकाय भरा था, उसे दो भागों में विभक्त कर एक भाग को गर्म किया गया। वह मर गया। जो गर्म नहीं किया गया था, वह जीवित रहा / गर्म पानी उसमें मिला दिया गया। वह निर्जीव हो गया। इसलिए कहा जा सकता है कि मृत