________________ 188 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन अपाद-चरण-रहित होता है, जो विराम-सहित होता है—पाठ के नहीं किन्तु अर्थ के विराम से युक्त होता है (जैसे-"जिणवरपादारविंदसदाणिउरुणिम्मल्लसहस्सा।" इस पूरे वाक्य को समाप्त किए बिना विराम नहीं लिया जा सकता। जो अन्त में अपरिमितबृहद् होता है और अन्त में जिसका मृदु-पाठ होता है, उसे गद्य कहते हैं।' पद्य: यह तीन प्रकार का होता है२(१) सम : जिसके पाद-चरण तथा अक्षर सम हों, उसे सम कहते हैं / कई यह भी मानते हैं कि जिसके चारों चरणों में समान अक्षर हों, उसे सम कहा जाता है। (2) अर्धसम : जिसके पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों के अक्षर समान हों, उसे अर्धसम कहते है। (3) विषम : जिसके सभी चरणों में अक्षर विषम हों, उसे विषम कहते हैं। गेय : जो गाया जाता है उसे गेय (गीत) कहते हैं / वह पाँच प्रकार का होता है3 (1) तंत्रोसम- जो वीणा आदि तंत्री के शब्दों के साथ-साथ गाया जाता है, उसे तंत्रीसम कहते हैं। (2) तालसम—जो ताल के साथ-साथ गाया जाता है, उसे तालसम कहते हैं।' १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 171 : महुरं हेउनिजुत्तं गहियमपायं विरामसंजुत्तं। . अपरिमियं चऽवसाणे कव्वं गज्जं ति नायव्वं // २--वही, गाथा 172 : पज्जं तु होइ तिविहं सममद्धसमं च नाम विसमं च / पाएहिं अक्खरेहिं य एवं विहिष्णू कई बेंति // ३--वही, गाथा 173 : (क) तंतिसमं तालसमं वण्णसमं गहसमं लयसमं च / ' ___ कव्वं तु होइ गेय पंचविहं गीयसन्नाए / (ख) हारिभद्रीय टीका, पत्र 88 / ४-चूर्णि में यहाँ व्यत्यय है / वहाँ तंत्रीसम, वर्णसम, तालसम मादि यह क्रम हैं। देखो-जिनदास चूर्णि, पृ० 77 /