________________ ___5. व्याख्या-ग्रन्यों के सन्दर्भ में : निक्षेप-पद्धति 185 (4) शिक्षापण : शिक्षण की दृष्टि से तोता और मैना आचारवान् होते हैं उन्हें मनुष्य की बोली सिखाई जा सकती है। कौए आदि अनाचारवान होते हैं-उन्हें मनुष्य की बोली नहीं सिखाई जा सकती। (5) सुकरण : सरलता से करने की दृष्टि से सोना आचारवान होता है, उसे गला-तपाकर सरलता से अनेक प्रकार के आभूषण बनाए जा सकते हैं। घंटा-लोह आचारवान् नहीं होता है, उसे तोड़कर उसकी दूसरी वस्तु नहीं बनाई जा सकती। (6) अविरोध : अविरोध की दृष्टि से गुड़ और दही आचारवान होते हैं उनका योग रसोत्कर्ष पैदा करता है। तेल और दूध अनाचारवान होते हैं, उनका योग रोग उत्पन्न करता है। 6. पद: (1) जिससे चला जाता है, उसे 'पद' कहते हैं, जैसे—हस्ति-पद, व्याघ्र-पद, सिंह-पद आदि-आदि / ' (2) जिससे कुछ निष्पन्न किया जाता है, उसे 'पद' कहते हैं, जैसे-नख-पद, परशु पद आदि-आदि। पद चार प्रकार का होता है : (1) नाम-पद-जिसका 'पद' नाम हो / (2) स्थापन-पद-जिस सचेतन या अचेतन वस्तु में 'पद' का आरोप किया - गया हो। (3) द्रव्य-पद। (4) भाव-पद / १-जिनदास चूर्णि, पृ० 76 : गम्मति जेणंति तं पदं भण्णइ, जहा हत्थिपदं वग्धपदं सीहपदं एवमादि / २-वही, पृ० 76 : पदंणाम जेण निव्वत्तिज्जइ तं पदं भण्णइ, जहा नहपदं परसुपदं वासिपदं / ३-दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 166 : णामपयं ठवणपयं दत्वपयं चेव होइ भावपयं। एक्केक्कंपिय एत्तो गविहं होइ नायव्वं //