________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : निक्षेप-पद्धति (3) काल-उपाय-नालिका काल जानने का उपाय है / (4) भाव-उपाय—इसे दो उदाहरणों से स्पष्ट किया है-एक खंभे का प्रासाद (देखो दशवकालिक चूणि की कथाएँ, कथा-संख्या 18) और दो विनय और विद्या (देखो वही, कथा-संख्या 16) / __अपाय और उपाय के निक्षेपों में दिए हुए लोकोत्तर उदाहरणों से नियुक्ति-काल, चूर्णि-काल और वृत्ति-काल में साधु-संघ की जो स्थिति थी, उसका यथार्थ चित्र हमें प्राप्त होता है। (1) द्रव्य-अपाय का लोकोत्तर रूप : उत्सर्ग-विधि के अनुसार मुमुक्षु को अधिक द्रव्य ( वस्त्र, पात्र आदि ) तथा स्वर्ण आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए। किन्तु विशेष कारण उपस्थित होने पर चिर-दीक्षित साधु यदि उनका ग्रहण करे तो कारण समाप्त होते ही उनका अपाय-परित्याग कर दे। (2) क्षेत्र-अपाय का लोकोतर रूप : __मुनि जिस क्षेत्र में विहार करता हो, यदि वह क्षेत्र अशिव आदि से आक्रान्त हो जाए तो मुनि उस क्षेत्र का अपाय कर दे / (3) काल-अपाय का लोकोत्तर रूप : दुर्भिक्ष आदि की स्थिति उत्पन्न होने पर मुनि को वह समय अन्यत्र बिताना चाहिए, जहाँ दुर्भिक्ष आदि की स्थिति न हो / (4) भाव-अपाय का लोकोत्तर रूप : ___ मुनि क्रोध आदि का अपाय करे / 4 १-हारिभद्रीय टीका, पत्र 39 : इहोत्सर्गतो मुमुक्षुणा द्रव्यमेवाधिकं वस्त्रपात्राद्यन्यद्वा कनकादि न ग्राह्य, शिक्षकाहिसंदिष्टादिकारणगृहीतमपि तत्परिसमाप्तौ परित्याज्यम् / २-जिनवास चूर्णि, पृ० 41 : साहुणावि असिवादीहिं कारणेहिं खेतावाओ कायव्वो। ३-वही, पृ० 41 : साहुणावि दुन्भिक्खस्स अवातो असिवाणं च कायव्वो, ण-उ अपुण्णे आगंतव्वं मूढत्ताए। ४-हारिभद्रीय टीका, पत्र 39: क्रोधादयोऽप्रशस्तभावास्तेषां विवेकः-नरकपातनाद्यपायहेतुत्वात्परित्यागः /