________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन सत्सम्प्रदायहीनत्वात्, सदूहस्य वियोगतः। सर्वस्वपरशास्त्राणामदृष्टेरस्मृतेश्च मे // 1 // वाचनानामनेकत्वात्, पुस्तकानामशुद्धितः / सूत्राणामतिगाम्भीर्यान्मतभेदाच्च कुत्रचित् // 2 // (स्थानाङ्ग वृत्ति, प्रशस्ति) 1. सत् सम्प्रदाय (अर्थ-बोध की सम्यक गुरु-परम्परा) प्राप्त नहीं है। 2. सत् ऊह ( अर्थ की आलोचनात्मक कृति या स्थिति ) प्राप्त नहीं है। 3. स्वकीय और परकीय सर्व शास्त्रों को मैंने न देखा है और जिन्हें देखा है उनकी __भी अविकल स्मृति नहीं है। 4. अनेक वाचनाएँ ( आगमिक अध्यापन की पद्धतियाँ ) हैं। 5. पुस्तके अशुद्ध हैं। 6. कृतियाँ सूत्रात्मक होने के कारण बहुत गम्भीर हैं। 7. अर्थ-विषयक मतभेद भी हैं। इन सारी कठिनाइयों के उारान्त भी उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोड़ा और वे कुछ कर गए। कठिनाइयाँ आज भी कम नहीं हैं। किन्तु उनके होते हुए भी आचार्य श्री तुलसी ने आगम-सम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया। उनके शक्ति-शाली हाथों का स्पर्श पाकर निष्प्राण भी प्राणवान् बन जाता है तो भला आगम-साहित्य जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बड़ी बात है ? बड़ी बात यह है कि आचार्य श्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साधु-साध्वियों की असमर्थ अंगुलियों द्वारा कराने का प्रयत्न किया है / सम्पादन कार्य में हमें आचार्य श्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है किन्तु मार्ग-दर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है। आचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए पर्याप्त समय दिया है। उनके मार्ग-दर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का सम्बल पा हम अनेक दुस्तर धारामों का पार पाने में समर्थ हुए हैं। आगम-सम्पादन की रूप-रेखा आगम-साहित्य के अध्येता दोनों प्रकार के लोग हैं-विद्वद्-वर्ग और जनसाधारण। दोनों को दृष्टि में रख कर हमने इस कार्य को छः ग्रन्थ-मालाओं में प्रथित किया है। उसका आकार यह है : १-आगम-सुत्त-ग्रन्थ-माला-इस ग्रन्थ-माला में प्रागमों के मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि होंगे। २-आगम ग्रन्थ-माला-इस ग्रन्थ-माला में आगमों के मूलयाठ, पाठान्तर, संस्कृत-छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम या सूत्रानुक्रम आदि होंगे।