________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : व्याख्यागत प्राचीन परम्पराएँ 156 कर रहा हो फिर भी अलग करने पर रोए तो भी भिक्षा नहीं लेते। यदि न रोए तो वे भिक्षा ले सकते हैं। शिष्य ने पूछा- "बालक को रोते छोड़ कर भिक्षा देने वाली गृहिणी से लेने में क्या दोष है ?" आचार्य ने कहा- 'बालक को नीचे कठोर भूमि पर रखने से एवं कठोर हाथों से उठाने से बालक में अस्थिरता आती है। इससे परिताप दोष होता है। बिल्ली आदि उसे उठा ले जा सकती है।"२ १-(क) अगस्त्य चूर्णि : गच्छवासीण थणजीवी थणं पियंतो निक्खित्तो रोवतु वा मा वा अम्गहणं, अह अपिबंतो णिक्खित्तो रोवंते ( अगहणं, अरोवंते ) गहणं, अह भत्तं पि आहारेति तं पिबंते निक्खित्ते रोवंते अम्गहणं, अरोवंते गहणं / गच्छनिग्यत्ताण थणजीविम्मि णिक्खित्ते पिबंते ( अपिबंते) वा रोवंते (अरोयंते) वा अग्गहणं, भत्ताहारे पिबंते निक्खित्ते रोयमाणे अरोयमाणे वा अग्गहणं, अपिबंते रोयमाणे अग्गहणं, अरोयमाणे गहणं / (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 180 : तत्थ गच्छवासी जति थणजीवी णिक्खित्तो तो ण गेण्हंति रोवतु वा मा वा, अह अन्नंपि आहारेति तो जति न रोवइ तो गेण्हंति, अह अपियंतओ णिक्खित्तो थणजीवी रोवइ तो ण गेण्हंति, गच्छनिग्गया पुण जाव थणजीवी ताव रोवउ वा मा वा अपियंतओ पियंतिओ वा न गेण्हंति, जाहे अन्नपि आहारे पयत्तो भवति ताहे जइ पियंतओ तो रोवइ मा वा ण गेण्हंति, अपियन्तओ जदि रोवइ परिहरंति अरोवंते गेण्हंति / (ग) हारिभद्रीय टीका, पत्र 172 : चूर्णि का ही पाठ यहाँ सामान्य परिवर्तन के साथ 'अत्रायं वृद्धसम्प्रदायः' .. कहकर उद्धृत किया है। - २-(क) अगस्त्य चूर्णि : एस्थ दोसा-सुकुमालसरीरस्स खरेहिं हत्थेहि सयणीए वा पीड़ा, मज्जारातीवा खाणाक्हरणं करेज्जा। (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 180-81 : सीसो आह–को तत्थ दोसोत्ति ?, आयरिओ आह-तस्स निक्खिप्पमाणस्स खरेहिं हत्थेहिं घेप्पमाणस्स य अपरित्तत्तणेण परितावणादोसो मज्जाराइ वा अवधरेज्जा। (ग) हारिभद्रीय टीका, पत्र 172 /