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________________ ६-विनय दशवकालिक के अध्ययन 6 के प्रथम उद्देशक में शिष्य का आचार्य के प्रति कैसा वर्तन हो इसका निरूपण है। द्वितीय उद्देशक में विनय और अविनय का भेद दिखलाया गया है। चतुर्थ उद्देशक में विनय-समाधि का उल्लेख किया गया है। अन्यत्र भी विनय का उपदेश है। सब का सार इस प्रकार है बड़ों का विनय करे / ' गुरु को मन्द, अल्प-वयस्क या अल्पश्रुत जान कर उनकी आशातना न करे / 2 सदा गुरु का कृपाकांक्षी बना रहे / जिससे धर्म-पद सीखे उसका विनय करे, सत्कार करे, हाथ जोड़े। जो गुरु विशोधि-स्थलों की अनुशासना दे, उसकी पूजा करे। गुरु की आराधना करे, उन्हें सन्तुष्ट रखे / 6 मोक्षार्थी मुनि गरु के वचनों का अतिक्रमण न करे। गुरु से नीचा बैठे, नीचे खड़ा रहे, नीचे आसन बिछाए, नीचे झुक कर प्रणाम करे। गुरु के उपकरणों या शरीर का स्पर्श न करे। ऐसा हो जाने पर तत्काल क्षमा-याचना करे और पुनः ऐसा न करने का संकल्प करे / गरु के अभिप्राय और इंगित को समझ कर बरते / 10 गुरु के समीप रहे। गुरु के अनुशासन को श्रद्धापूर्वक सुने। अनुशासन को श्रद्धा से स्वीकार करे। गुरु के आदेशानुसार बरते। अभिमान न करे।' १-दशवकालिक, 8140 / 2. वही, 9 / 12 / ३-वही, 9 / 1 / 10 / ४.-वही, 9 / 1 / 12 / ५-वही, 9 / 1 / 13 / 6. वही, 9 / 1 / 16 / ७-वही, 9 / 2 / 16 / ८-वही, 9 / 2 / 17 / ९-वही, 9 / 2 / 18 / १०-वही, 9 / 2 / 20 / ११--वही, ९।४सू०४।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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