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________________ 116 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन अप-जगत् और अहिंसक निर्देश : मुनि सजीव जल का स्पर्श न करे। सजीव जल से भीगे हुए वस्त्र या शरीर का न स्पर्श करे, न निचोड़े, न झटके, न सुखाए और न तपाए।' जल की किसी भी प्रकार से हिंसा न करे। शीतोदक का सेवन न करे / तप्तानिवृत–तप्त होने पर जो निर्जीव हो गया हो, वैसा जल ले। ___तप्त और अनिवृत-इन दो शब्दों का समास मिश्र (सचित्त-अचित्त) वस्तु'का अर्थ जताने के लिए हुआ है। जितनी दृश्य वस्तुएँ हैं वे पहले सचित्त होती हैं। उनमें से जब जीव च्युत हो जाते हैं, केवल शरीर रह जाते हैं, तब वे वस्तुएं अचित्त बन जाती हैं। जीवों का च्यवन काल-मर्यादा के अनुसार स्वयं होता है और विरोधी पदार्थ के संयोग से काल-मर्यादा से पहले भी हो सकता है। जीवों की मृत्यु के कारण-भूत विरोधी पदार्थ शस्त्र कहलाते हैं। मिट्टी, जल, वनस्पति और त्रस जीवों का शस्त्र अग्नि है। जल और वनस्पति सचित्त होते हैं। अग्नि से उबालने पर ये अचित्त ही हैं। किन्तु ये पूर्ण-मात्रा में उबाले हुए न हों उस स्थिति में मिश्र बन जाते हैं—कुछ जीव मरते हैं, कुछ नहीं मरते, इसलिए वे सचित्त-अचित्त बन जाते हैं। इस प्रकार के पदार्थ को तप्तानित कहा जाता है।४ ___गर्म होने के बाद ठंडा हुआ पानी कुछ समय में फिर सचित्त हो जाता है, उसे भी तप्तानिवृत कहा गया है। अगस्त्यसिंह स्थविर के अनुसार ग्रीष्म-काल में एक दिन-रात के बाद गर्म पानी फिर सचित्त हो जाता है तथा हेमन्त और वर्षा-ऋतु के पूर्वाह्न में गर्म किया हुआ जल अपराह्न में सचित्त हो जाता है।५ जिनदास महत्तर का भी यही अभिमत रहा १-दशवैकालिक, ४।सू०२०; 87 / २-वही, 6 / 29,30,31 / ३-वही, 8 / 6 / ४-अगस्त्य चूर्णि: जाव णातीवअगणिपरिणतं तं तत्तअपरिणिव्वुडं। ५-वही: अहवा तत्तं पाणितं पुणो सीतलीभूतं आउक्कायपरिणामं जाति तं अपरिणयं अणिव्वुडं गिम्हे अहोरत्तेणं सचित्ती भवति, हेमन्ते-वासासु, पुव्वण्हे कतं अवरण्हे।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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