________________ श्रीसिद्धसेनदिवाकरप्रणीता ~~~wwwmummmmmmmmmmmmmmmmm. यमिच्छाविमुक्तं शिवश्रीस्तु भेजे स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः // 10 // जगत्सम्भव-स्थेम-विध्वंसरूपै रलीकेन्द्रजालैर्न यो जीवलोकम् / महामोहकूपे निचिक्षेप नाथ ! स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः // 11 // समुत्पत्ति-विध्वंस-नित्यस्वरूपा यदुत्था त्रिपयेव लोके विधित्वम् / हरत्वं हरित्वं प्रपेदे स्वभावैः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः // 12 // त्रिकाल-त्रिलोक-त्रिशक्ति-त्रिसन्ध्य.. त्रिवर्ग-त्रिदेव-त्रिरत्नादिभावैः / यदुक्ता त्रिपधेव विश्वानि वत्रे - स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः॥१३॥ यदाज्ञा त्रिपथेव मान्या ततोऽसौ - तदस्त्येव नो वस्तु यन्नाधितष्ठौ / अतो ब्रूमहे वस्तु यत् तद् यदीयं ___ स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः // 14 // न शब्दो न रूपं रसो नापि गन्धो न वा स्पर्शलेशो न वर्णों न लिङ्गम् / न पूर्वापरत्वं न यस्यास्ति संज्ञा - स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः // 15 //