________________ प्रकाशकीय निवेदन साहित्यसम्राट् स्व० पू० आचार्यदेव श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरजी म० श्रीए जैन शासनना ज्योतिर्धर 50 पू० आचार्य भगवंत श्रीसिद्धसेन दिवाकर सूरीश्वरजी म.श्री विरचित संस्कृत बत्रीश बत्रीशीओ (द्वात्रिंशद द्वात्रिंशिका) पैकी एकवीश द्वात्रिंशिकाओ उपलब्ध छे ते उपर रचेली किरणावलीटोका प्रकाशित करतां अमने अनहद आनंद थाय छे / दर्शनशास्त्रमा मा ग्रंथ उच्चकोटिनो गणाय छ। आनी रचना पद्यमां करायेली छे एटले मूलकर्ता महर्षिना कवित्वनो ख्याल पण वाचकोने आवी शकशे / / कविदिवाकर पूआ. श्रीविजयसुशीलसूरीश्वरजी म० श्रीए मा अन्धनु संपादन करी अमने प्रकाशन माटे आप्यो ते अमारं महोभाग्य छ / . प्रस्तुत ग्रन्थना प्रकाशनमां मुद्रणालयादिने लई ने रही गयेली स्खलानामो मंगे, विद्वानो अमने जणावशे तो अमो तेमनो आभार मानीचु भने बीजी आवृत्तिमा ए स्खलनाओ सुधारी लइशु / आ ग्रन्थ ऊपर अमारी विनंतो स्वीकारी डॉ०पिनाकिन् दवेए विद्वत्ताथी सभर प्रस्तावना लखी आपी छे ते बदल अमो तेमनो आभार मानीए छोए। तेमणे या ग्रन्थ उपर पीएच्. डी० नी डीग्री प्राप्त करी छ / आ ग्रन्थना प्रकाशनमा असह्य मोघवारीने