________________ हवे ग्यारे आ द्वात्रिंशिकाओ परनो टीका प्रसिद्ध थाय के . त्यारे ए काचुं काम ज प्रस्तुत करायुं छे के मा०विजयलावण्यसूरिजीए तेने योग्य संमार्जन पण कयु हतुं ए जाणवामां आव्युं नथी. पण टीका जोतां एवं लागतुं नथी / . . मारा आ लखाणमां महद् अंशे आ०. सिद्धनेननो परिचय, खास तो एमनी कृतिमोना उपलक्षमा आपवा धार्यों छे। . ___ आ० सिद्धसेन विशे आटलां वर्षों बाद लखवानो अवसर मळयो ए मारा माटे आनंद तथा गौरवनी वात छे / आवो अवसर प्राप्त कराववा माटे हुं पं० श्रीअम्बालालभाई प्रे० शाहनो ऋणी छु / मनमा अभिलाषा तो छ ज के प्रत्येक द्वात्रिंशिका पर एक स्वतंत्र ग्रंथ तैयार करवानुं सदभाग्य मळे तो ज आ०सिद्धनेनो पूर्ण अभ्यास थई शके / महीं तो दिङ्मात्र दर्शन कराव्यु छे, विद्वानोने 'ए संतर्पक न पण, लागे तो क्षमाप्रार्थी छु / आ प्रकारना लखागनी एक मर्यादा होप छ / जीवन 0 सिद्धसेनना जोवनने मालोकित करती समकालोन कही शकाय तेवी कोई सामग्री उपलब्ध थती नथी / आपणे मुख्यत्वे प्रबन्धो पर आधार राखवो पडे छे / तेमां आ०प्रभाचंद्रकृत 'प्रभाचकचरित' मेरुतुंगाचार्यकृत 'प्रबन्धचिन्तामणि' अने आ० राजशेखर कृत 'प्रबन्धकोश' अथवा 'चतुर्विशतिप्रबन्ध' मुख्य छे, जेनी रचना वि०सं० 1334, 1361 अने 1405 मां अनुक्रमे थई हती।