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________________ (पुरोवाकू श्री उदाराम वैष्णव ने उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय (पाटण) से Ph.D. उपाधि के लिए प्रस्तुत अपने शोधग्रन्थ "जिनसेनाचार्यकृत हरिवंश पुराण और सूरसागर में श्रीकृष्ण" में जैन परम्परा एवं वैष्णव परम्परा में श्री कृष्ण चरित्र का विशद विवेचन / विश्लेषण कर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय कार्य किया है। श्री वैष्णव ने अपने इस शोध ग्रन्थ में जिस पर उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय ने उन्हें Ph.D. की उपाधि प्रदान की है, जैन परम्परा व वैष्णव परम्परा में श्री कृष्ण चरित्र के समग्र वर्णन के लिए आगम साहित्य से अद्यतन काल तक की रचनाओं को जुटा पाना कितना दुष्कर रहा होगा, कल्पना की जा सकती है। डॉ. वैष्णव ने श्री कृष्ण चरित्र का न केवल तुलनात्मक अध्ययन किया है वरन् उन्होंने श्री कृष्ण को भारतीय संस्कृति में साम्प्रदायिक सद्भाव का पुरोधा बताकर समाज को नई दिशा प्रदान की है। ___डॉ. वैष्णव के इस शोध-कार्य से हिन्दी साहित्य को समृद्धि मिली है तथा हिन्दी शोध-कार्य को भी प्रतिष्ठा मिली है। मुझे विश्वास है कि डॉ. वैष्णव का यह शोध कार्य आगामी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद रहेगा। इसी महत्त्वपूर्ण हेतु से इस ग्रन्थ के प्रकाशन में श्री खरतरगच्छ संघ, सांचोर का सहयोग रहा है। अस्तु। प्रकाशचन्द कानूगो पूर्व अध्यक्ष श्री खरतरगच्छ जैन श्वेताम्बर संघ, सांचोर
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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