________________ दोनों कवियों में प्रकृति-प्रेक्षण की पूर्ण क्षमता है। इस क्षेत्र में सूर की संवेदन-समृद्धि जिनसेनाचार्य से अधिक है। काव्य रूप की दृष्टि से हरिवंशपुराण एक विशालकाय पौराणिक चरित महाकाव्य है। सम्पूर्ण कृष्ण कथा इसमें विराट कल्पना के साथ प्रस्तुत हुई है, जिसमें बाह्य जीवन मूल्यों का सुन्दर समायोजन है। गीतकार सूर शुद्ध काव्य के प्रणेता थे। उनकी कल्पना ने मनोरम मुक्तक काव्य का निर्माण किया है जो जनवादी धारा तथा मानवीय भावों की सहजता को प्रकट करता है। . __ हरिवंशपुराण तथा सूरसागर अपने-अपने क्षेत्र के परवर्ती काव्यों की रचनाओं के लिए आधार स्तंभ ग्रन्थ रहे हैं। जिनसेनाचार्य की कृति हरिवंशपुराण जैन परम्परा में कृष्ण चरित्र वर्णन के लिए उपजीव्य बन गई है। शताब्दियों पूर्व बनने वाली कृति को आज भी कई कवियों ने इसे आधार रूप में ग्रहण कर इसकी धवल कीर्ति को आलोकित किया है। केवल संस्कृत भाषा ही नहीं वरन् अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि विविध भाषाओं में वर्णित जैन कृष्ण चरित्र वर्णन पर इसका स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। सूरसागर की विलक्षणता से वल्लभ, राधावल्लभ, दरिदासी तथा चैतन्य सम्प्रदाय के परवर्ती काव्यों की रचनाएँ प्रचुर मात्रा में प्रभावित रही हैं। इस प्रभाव की व्याप्ति रीतिकालीन कवियों तथा आधुनिक काल के कवियों तक रही है। केवल साहित्यिक दृष्टि से ही नहीं परन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से भी दोनों ग्रन्थों का अभूतपूर्व महत्त्व, है। दोनों ग्रन्थों में तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों का चित्रण सूक्ष्मता के साथ हुआ है। इस वर्णन में सूरसागर की अपेक्षा हरिवंशपुराण आगे है, क्योंकि उसके पास विस्तृत भाव भूमि थी फलस्वरूप इसमें मानव जीवन के विविध अवस्थाओं का कलापूर्ण निरूपण हुआ है। सूरसागर में वर्णित सांस्कृतिकता भी किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। उसकी लोकप्रियता ही उसके सर्वश्रेष्ठ महत्त्व को उजाकर करती है। उसकी वाणी जनमानस में अद्यावधि तक गूंजती रही है। दोनों कृतियों के वर्ण्य-विषय में कृष्ण चरित्र का मानवतावादी स्वरूप दिखाई देता है, यही इन कृतियों की सर्वश्रेष्ठ सिद्धि है। इनकी कथा का नायक अत्यन्त साधारण जनस्तर से अपना जीवन का प्रारम्भ करता है। गोप-ग्वालों की निम्न जाति में उसका चरित्र विकसित होता है। जन्म से राजवंश से सम्बन्धित होने पर भी वह अपने अभिजात्य से अस्पृष्ट रहता है। उसके बचपन में अलौकिकता की ऊँची-ऊँची तरंगें उठती हैं परन्तु ग्वालबालों के साथ उसके गुजरते सामाजिक जीवन में कहीं कभी नहीं आती। तदुपरान्त जब कथानायक गोकुल वृन्दावन के ग्रामीण परिवेश को छोड़कर मथुरा जाते हैं तो वहाँ जनभावना को ध्यान में रखकर अत्याचारी कंस का वध करते हैं। आज के युग में भी जननायकों द्वारा जनभावना के अनुसार काम करने की परमावश्यकता है।