________________ दोनों ग्रन्थों की कथावस्तु पर विचार किया जाय तो दोनों ग्रन्थों का वर्ण्य-विषय कृष्ण-चरित्र रहा है। दोनों ग्रन्थों में अपनी परम्परानुसार कृष्ण व्यक्तित्व को कुछ साम्य तथा वैषम्य के साथ वर्णित किया गया है। जिनसेनाचार्य ने कृष्ण को नौंवा नारायण एवं शलाकापुरुष सिद्ध किया है तो सूर ने भक्ति का मुख्य आलम्बन। जिनसेनाचार्य ने कृष्ण को वीर, साहसी, अप्रतिम योद्धा तथा आध्यात्मिक राजपुरुष बतलाया है तो सूर ने गोपीजन प्रिय, रासक्रीड़ाओं के नायक तथा लोकपुरुष के रूप में उनका वर्णन किया है। सूर का मन कृष्ण चरित्र के सम्पूर्ण व्यक्तित्व में न रमकर मात्र उनकी बाल एवं किशोर लीलाओं तक ही सीमित रहा है। भागवत का अनुसरण करने हेतु अन्य प्रसंगों को भी उन्होंने संक्षेप में निरूपित किया है परन्तु वे मात्र वर्णन बन कर रहे गये हैं। सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावों की कलात्मक अभिव्यक्ति तो वात्सल्य एवं शृंगार वर्णन में ही परिलक्षित होती है। ' हरिवंशपुराण में कवि ने कृष्ण चरित्र में कुछ नवीनताएँ प्रदान की हैं, जो जैनेतर कृष्ण साहित्य में कहीं नहीं मिलती। कृष्ण का अरिष्टनेमि के चचेरे भाई होना, उनके छः भाईयों द्वारा जैन दीक्षा लेना, रुक्मिणी हरण के समय शिशुपाल का वध करना, महाभारत का युद्ध कौरवों तथा पाण्डवों का युद्ध न होकर श्री कृष्ण व जरासंध का निर्णायक युद्ध होना, कृष्ण की बहिन का दुर्गा रूप में प्रतिष्ठित होना, कृष्ण परिवार द्वारा जैन दीक्षा लेना. इत्यादि अनेक प्रसंग कवि की मौलिक कल्पना के परिचायक हैं। कृष्ण के राजनीतिज्ञ स्वरूप में तथा आध्यात्मिक पुरुष के रूप में भी कवि ने कथानक को अलग दृष्टिकोण से निरूपित किया है। हरिवंशपुराण में कृष्ण को शलाका पुरुष सिद्ध करने के लिए उनके अनेक युद्धों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिसमें वीर रस की सुन्दर अभिव्यक्ति है। इस प्रकार दोनों कृतियों की कथावस्तु अपने-अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय रही है। दार्शनिक विचारों से दोनों कवियों में पर्याप्त अन्तर है। आचार्य जिनसेन का दिगम्बर सम्प्रदाय से दीक्षित होने के कारण उन्होंने सम्यक् दर्शन, सम्यक् चरित्र तथा सम्यक् ज्ञान पर ही सर्वाधिक बल दिया है क्योंकि यहाँ "त्रिरत्न" जैन दर्शन के मूलाधार सिद्धान्त हैं। कवि ने जीव, आत्मा, माया, बन्ध, मोक्ष, ब्रह्म, अवतारवाद, कर्म तथा पुनर्जन्म इत्यादि का सूक्ष्मातिसूक्ष्म निरूपण किया है, ऐसा तात्त्विक विवेचन अन्यत्र दुर्लभ है। कवि ने जैन सम्प्रदाय के मुख्य सिद्धान्तों के निरूपण में मुख्य भूमिका निभाई है। उनके स्याद्वाद, पाँच भावनाएँ, तीन गुप्तियाँ, जीवादि सात तत्त्व इत्यादि के संश्लेषणात्मक विश्लेषण में भी गहन चिन्तन का चित्रण हुआ है। इस वर्णन में कवि को पूर्ण सफलता मिली है, जो उनकी आध्यात्मिक गहराई को प्रकट करती है। ___महाकवि सूर आचार्य वल्लभ से दीक्षित होने के कारण उनके विचार वल्लभाचार्य से अनुमोदित थे। उनके अनुसार ही सूर ने ब्रह्म को सच्चिदानन्द, पूर्णपुरुषोत्तम, अक्षर,